Tuesday, December 31, 2013

*** चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हमारा नववर्ष है ***


दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतू से ही प्रारम्भ होता है , यहाँ तक की ईस्वी सन बाला कैलेण्डर ( जो आजकल प्रचलन में है ) वो भी मार्च से प्रारम्भ होना था . इस कलेंडर को बनाने में कोई नयी खगोलीये गणना करने के बजाये सीधे से भारतीय कैलेण्डर ( विक्रम संवत ) में से ही उठा लिया गया था . आइये जाने क्या है इस कैलेण्डर का इतिहास - 

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दुनिया में सबसे पहले तारो, ग्रहों, नक्षत्रो आदि को समझने का सफल प्रयास भारत में ही हुआ था, तारो , ग्रहों , नक्षत्रो , चाँद , सूरज ,...... आदि की गति को समझने के बाद भारत के महान खगोल शास्त्रीयो ने भारतीय कलेंडर ( विक्रम संवत ) तैयार किया , इसके महत्त्व को उस समय सारी दुनिया ने समझा .
भारतीय महीनों के नाम जिस महीने की पूर्णिया जिस नक्षत्र में पड़ती है उसी के नाम पर पड़ा। जैसे इस महीने की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में हैं इस लिए इसे चैत्र महीनें का नाम हुआ। श्री मद्भागवत के द्वादश स्कन्ध के द्वितीय अध्याय के अनुसार जिस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र पर ये उसी समय से कलियुग का प्रारम्भ हुआ, महाभारत और भागवत के इस खगोलिय गणना को आधार मान कर विश्वविख्यात डॉ. वेली ने यह निष्कर्ष दिया है कि कलयुग का प्रारम्भ 3102 बी.सी. की रात दो बजकर 20 मिनट 30 सेकण्ड पर हुआ था। डॉ. बेली महोदय, स्वयं आश्चर्य चकित है कि अत्यंत प्रागैतिहासिक काल में भी भारतीय ऋणियों ने इतनी सूक्ष्तम् और सटिक गणना कैसे कर ली। क्रान्ती वृन्त पर 12 हो महीने की सीमायें तय करने के लिए आकाश में 30-30 अंश के 12 भाग किये गये और नाम भी तारा मण्डलों के आकृतियों के आधार पर रखे गये। जो मेष, वृष, मिथून इत्यादित 12 राशियां बनी।
चूंकि सूर्य क्रान्ति मण्डल के ठी केन्द्र में नहीं हैं, अत: कोणों के निकट धरती सूर्य की प्रदक्षिणा 28 दिन में कर लेती है और जब अधिक भाग वाले पक्ष में 32 दिन लगता है। प्रति तीन वर्ष में एक मास अधिक मास कहलाता है संयोग से यह अधिक मास अगले महीने ही प्रारम्भ हो रहा है।
भारतीय काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि सदियों-सदियों तक एक पल का भी अन्तर नहीं पड़ता जब कि पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते है। इस प्रकार प्रतयेक चार वर्ष में फरवरी महीनें को लीपइयर घोषित कर देते है फिर भी। नौ मिनट 11 सेकण्ड का समय बच जाता है तो प्रत्येक चार सौ वर्षो में भी एक दिन बढ़ाना पड़ता है तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता है। अभी 10 साल पहले ही पेरिस के अन्तरराष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक सेकण्ड स्लो कर दिया गया फिर भी 22 सेकण्ड का समय अधिक चल रहा है। यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है जहां की सी जी एस सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय किये जाते हैं। रोमन कैलेण्डर में तो पहले 10 ही महीने होते थे। किंगनुमापाजुलियस ने 355 दिनों का ही वर्ष माना था। जिसे में जुलियस सीजर ने 365 दिन घोषित कर दिया और उसी के नाम पर एक महीना जुलाई बनाया गया उसके 1 ) सौ साल बाद किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट भी बढ़ाया गया चूंकि ये दोनो राजा थे इस लिए इनके नाम वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गये। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद बात है कि लगातार दो महीने के दिन समान है जबकि अन्य महीनों में ऐसा नहीं है। यदि नहीं जिसे हम अंग्रेजी कैलेण्डर का नौवा महीना सितम्बर कहते है, दसवा महीना अक्टूबर कहते है, इग्यारहवा महीना नवम्बर और बारहवा महीना दिसम्बर कहते है। इनके शब्दों के अर्थ भी लैटिन भाषा में 7,8,9 और 10 होते है। भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय काल गणना पूरे विश्व में व्याप्त थी और सचमूच सितम्बर का अर्थ सप्ताम्बर था, आकाश का सातवा भाग, उसी प्रकार अक्टूबर अष्टाम्बर, नवम्बर तो नवमअम्बर और दिसम्बर दशाम्बर है।
सन् 1608 में एक संवैधानिक परिवर्तन द्वारा एक जनवरी को नव वर्ष घोषित किया गया। जेनदअवेस्ता के अनुसार धरती की आयु 12 हजार वर्ष है। जबकि बाइविल केवल 2) हजार वर्ष पुराना मानता है। चीनी कैलेण्डर 1 ) करोड़ वर्ष पुराना मानता है। जबकि खताईमत के अनुसार इस धरती की आयु 8 करोड़ 88 लाख 40 हजार तीन सौ 11 वर्षो की है। चालडियन कैलेण्डर धरती को दो करोड़ 15 लाख वर्ष पुराना मानता है। फीनीसयन इसे मात्र 30 हजार वर्ष की बताते है। सीसरो के अनुसार यह 4 लाख 80 हजार वर्ष पुरानी है। सूर्य सिध्दान्त और सिध्दान्त शिरोमाणि आदि ग्रन्थों में चैत्रशुक्ल प्रतिपदा रविवार का दिन ही सृष्टि का प्रथम दिन माना गया है।
संस्कृत के होरा शब्द से ही, अंग्रेजी का आवर (Hour) शब्द बना है। इस प्रकार यह सिद्ध हो रहा है कि वर्ष प्रतिपदा ही नव वर्ष का प्रथम दिन है। एक जनवरी को नव वर्ष मनाने वाले दोहरी भूल के शिकार होते है क्योंकि भारत में जब 31 दिसम्बर की रात को 12 बजता है तो ब्रीटेन में सायं काल होता है, जो कि नव वर्ष की पहली सुबह हो ही नहीं सकता। और जब उनका एक जनवरी का सूर्योदय होता है, तो यहां के Happy New Year वालों का नशा उतर चुका रहता है। सन सनाती हुई ठण्डी हवायें कितना भी सूरा डालने पर शरीर को गरम नहीं कर पाती है। ऐसे में सवेरे सवेरे नहा धोकर भगवान सूर्य की पूजा करना तो अत्यन्त दुस्कर रहता है। वही पर भारतीय नव वर्ष में वातावरण अत्यन्त मनोहारी रहता है। केवल मनुष्य ही नहीं अपितु जड़ चेतना नर-नाग यक्ष रक्ष किन्नर-गन्धर्व, पशु-पक्षी लता, पादप, नदी नद, देवी देव व्यरष्टि से समष्टि तक सब प्रसन्न हो कर उस परम् शक्ति के स्वागत में सन्नध रहते है।

लेकिन यह इतना अधिक व्यापक था कि - आम आदमी इसे आसानी से नहीं समझ पाता था , खासकर पश्चिम जगत के अल्पज्ञानी तो बिल्कुल भी नहीं . किसी भी बिशेष दिन , त्यौहार आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए विद्वान् ( पंडित ) के पास जाना पड़ता था . अलग अलग देशों के सम्राट और खगोल शास्त्री भी अपने अपने हिसाब से कैलेण्डर बनाने का प्रयास करते रहे .

इसके प्रचलन में आने के 57 बर्ष के बाद सम्राट आगस्तीन के समय में पश्चिमी कैलेण्डर ( ईस्वी सन ) विकसित हुआ . लेकिन उस में कुछ भी नया खोजने के बजाये , भारतीय कैलेंडर को लेकर सीधा और आसान बनाने का प्रयास किया था . प्रथ्वी द्वरा 365 / 366 में होने बाली सूर्य की परिक्रमा को बर्ष और इस अबधि में चंद्रमा द्वारा प्रथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मान कर कैलेण्डर तैयार किया और क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रख दिए गए . पहला महीना मार्च (एकम्बर) से नया साल प्रारम्भ होना था

1. - एकाम्बर ( 31 ) , 2. - दुयीआम्बर (30) , 3. - तिरियाम्बर (31) , 4. - चौथाम्बर (30) , 5.- पंचाम्बर (31) , 6.- षष्ठम्बर (30) , 7. - सेप्तम्बर (31) , 8.- ओक्टाम्बर (30) , 9.- नबम्बर (31) , 10.- दिसंबर ( 30 ) , 11.- ग्याराम्बर (31) , 12.- बारम्बर (30 / 29 ), निर्धारित किया गया . ( सेप्तम्बर में सप्त अर्थात सात , अक्तूबर में ओक्ट अर्थात आठ , नबम्बर में नव अर्थात नौ , दिसंबर में दस का उच्चारण महज इत्तेफाक नहीं है.

लेकिन फिर सम्राट आगस्तीन ने अपने जन्म माह का नाम अपने नाम पर आगस्त ( षष्ठम्बर को बदलकर) और भूतपूर्व महान सम्राट जुलियस के नाम पर - जुलाई (पंचाम्बर) रख दिया . इसी तरह कुछ अन्य महीनों के नाम भी बदल दिए गए . फिर बर्ष की शरुआत ईसा मसीह के जन्म के 6 दिन बाद (जन्म छठी) से प्रारम्भ माना गया . नाम भी बदल इस प्रकार कर दिए गए थे . जनवरी (31) , फरबरी (30 / 29 ), मार्च ( 31 ) , अप्रैल (30) , मई (31) , जून (30) , जुलाई (31) , अगस्त (30) , सेप्तम्बर (31) , अक्तूबर (30) , नबम्बर (31) , दिसंबर ( 30) , माना गया .

फिर अचानक सम्राट आगस्तीन को ये लगा कि - उसके नाम बाला महीना आगस्त छोटा (30 दिन) का हो गया है तो उसने जिद पकड़ ली कि - उसके नाम बाला महीना 31 दिन का होना चाहिए . राजहठ को देखते हुए खगोल शास्त्रीयों ने जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया और उसके बाद वाले सेप्तम्बर (30) , अक्तूबर (31) , नबम्बर (30) , दिसंबर ( 31) का कर दिया . एक दिन को एडजस्ट करने के लिए पहले से ही छोटे महीने फरवरी को और छोटा करके ( 28/29 ) कर दिया .

मेरा आप सभी भारतीयों से निवेदन है कि - नकली कैलेण्डर के अनुसार नए साल पर, फ़ालतू का हंगामा करने के बजाये , पूर्णरूप से वैज्ञानिक और भारतीय कलेंडर (विक्रम संवत) के अनुसार आने वाले नव बर्ष प्रतिपदा पर , समाज उपयोगी सेवाकार्य करते हुए नवबर्ष का स्वागत करें .....

Sunday, December 29, 2013

*** सर्दियों में जरूर खाने चाहिए तिल, ये हैं कुछ खास कारण ***


सर्दियों में जरूर खाने चाहिए तिल, ये हैं कुछ खास कारण

हमारे भारत में हर मौसम में खान-पान से जुड़ी कुछ परंपराएं है जिन्हें हम निभाते भी आ रहे हैं पर पता नहीं है कि क्यों? ऐसी ही एक परंपरा है ठंड में तिल के सेवन की। हमारे यहां सर्दियों में तिल का उपयोग कई तरह से किया जाता है। दरअसल तिल के ये छोटे-छोटे दाने सेहत से भरपूर हैं। इसलिए तिल का प्रयोग घी व गुड़ के साथ करने से वर्षभर कई तरह के रोग दूर रहते हैं। साथ ही घर में बनी तिल पट्टी व बिजौरे भी शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं।

- यदि किसी को बार-बार यूरिन आने या खुलकर यूरिन न आने की समस्या है तो उसे पांच ग्राम तिल और पांच ग्राम गौखरू का काढा बनाकर दें। आराम मिलेगा। तिल के तेल में नीम की पत्तियां डालें। इस तेल की मालिश से मुंहासे व चर्म रोग से निजात मिलती है। तिल के तेल से कोलेस्ट्रोल का स्तर घटता है।

- तिल में कई प्रकार के प्रोटीन, कैल्शियम, बी काम्प्लेक्स और कार्बोहाइट्रेड आदि तत्व पाए जाते हैं। तिल का सेवन करने से तनाव दूर होता है और मानसिक दुर्बलता नही होती।

- तनाव आज की भाग-दौड़ भरी जीवन शैली का हिस्सा बन गया है लेकिन तिल के रोजांना इस्तेमाल से तनाव भी कम होता है। और साथ शरीर को हल्का महसूस होता है। तिल थकान और अनिद्रा जैसी कई छोटी-छोटी बीमारियों से निजात दिलाता है। और शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।


- तिल में एक खास तरह का एंटीऑक्सिडेंट होता है,जो कैंसर को जन्म देने वाले फ्री रैडिकल्स से छुटकारा दिलवाने में मदद करता है। इसके अलावा यह शरीर में फैटी एसिड्स के निर्माण को कम करता है जिससे वजन बढऩे का खतरा कम हो जाता है। तिल के तेल का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के ब्यूटी ट्रीटमेंट्स में किया जाता है।तेल से त्वचा स्वस्थ होती है और बाल भी मजबुत होते है। इसके अलावा तिल का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से आखों के नीचे पडऩे वाले काले घेरों से छुटकारा मिलता है।

- पाचन शक्ति बढ़ाने के लिये भी तिल का उपयोग किया जाता है। इसके लिए समान मात्रा में बादाम, मुनक्का, पीपल, नारियल की गिरी और मावा अच्छी तरह से मिला लें, फि र इस मिश्रण के बराबर तिल लेकर उसे भी कूट पीसकर इसी मिश्रण में मिला लें अब इस मिश्रण में आवश्यकतानुसार मिश्री मिला लें। सुबह-सुबह खाली पेट इस मिश्रण का सेवन करने से पाचन शक्ति बढ़ती है।

Saturday, December 28, 2013

*** शीत ऋतु में उपयोगी पाक ***



शीतकाल में पाक का सेवन अत्यंत लाभदायक होता है। पाक के सेवन से रोगों को दूर करने में एवं शरीर में शक्ति लाने में मदद मिलती है। स्वादिष्ट एवं मधुर होने के कारण रोगी को भी पाक का सेवन करने में उबान नहीं आती।
पाक बनाने की सर्वसामान्य विधिः पाक में डाली जाने वाली काष्ठ-औषधियों एवं सुगंधित औषधियों का चूर्ण अलग-अलग करके उन्हें कपड़छान कर लेना चाहिए। किशमिश, बादाम, चारोली, खसखस, पिस्ता, अखरोट, नारियल जैसी वस्तुओं के चूर्ण को कपड़छन करने की जरूरत नहीं है। उन्हें तो थोड़ा-थोड़ा कूटकर ही पाक में मिला सकते हैं।
पाक में सर्वप्रथम काष्ठ औषधियाँ डालें, फिर सुगंधित पदार्थ डालें। अंत में केसर को घी में पीसकर डालें।
पाक तैयार होने पर उसे घी लगायी हुई थाली में फैलाकर बर्फी की तरह छोटे या बड़े टुकड़ों में काट दें। ठंडा होने पर स्वच्छ बर्तन या काँच की बरनी में भरकर रख लें।
पाक खाने के पश्चात दूध अवश्य पियें। इस दौरान मधुर रसवाला भोजन करें। पाक एक दिन में ज्यादा से ज्यादा 40 ग्राम जितनी मात्रा तक खाया जा सकता है।

अदरक पाकः-

अदरक के बारीक-बारीक टुकड़े, गाय का घी एवं गुड़ – इन तीनों को समान मात्रा में लेकर लोहे की कड़ाही में अथवा मिट्टी के बर्तन में धीमी आँच पर पकायें। पाक जब इतना गाढ़ा हो जाय कि चिपकने लगे तब आँच पर से उतारकर उसमें सोंठ, जीरा, काली मिर्च, नागकेसर, जायफल, इलायची, दालचीनी, तेजपत्र, लेंडीपीपर, धनिया, स्याहजीरा, पीपरामूल एवं वायविंडम का चूर्ण ऊपर की औषधियाँ (अदरक आदि) से चौथाई भाग में डालें। इस पाक को घी लगे हुए बर्तन में भरकर रख लें।
शीतकाल में प्रतिदिन 20 ग्राम की मात्रा में इस पाक को खाने से दमा, खाँसी, भ्रम, स्वरभंग, अरुचि, कर्णरोग, नासिकारोग, मुखरोग, क्षय, उरःक्षतरोग, हृदय रोग, संग्रहणी, शूल, गुल्म एवं तृषारोग में लाभ होता है।

खजूर पाकः-

खारिक (खजूर) 480 ग्राम, गोंद 320 ग्राम, मिश्री 380 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, लेंडीपीपर 20 ग्राम, काली मिर्च 30 ग्राम तथा दालचीनी, तेजपत्र, चित्रक एवं इलायची 10 -10 ग्राम डाल लें। फिर उपर्युक्त विधि के अनुसार इन सब औषधियों से पाक तैयार करें।
यह पाक बल की वृद्धि करता है, बालकों को पुष्ट बनाता है तथा इसके सेवन से शरीर की कांति सुंदर होकर, धातु की वृद्धि होती है। साथ ही क्षय, खाँसी, कंपवात, हिचकी, दमे का नाश होता है।

बादाम पाकः-

बादाम 320 ग्राम, मावा 160 ग्राम, बेदाना 45 ग्राम, घी 160 ग्राम, मिश्री 1600 ग्राम तथा लौंग, जायफल, वंशलोचन एवं कमलगट्टा 5-5 ग्राम और एल्चा (बड़ी इलायची) एवं दालचीनी 10-10 ग्राम लें। इसके बाद उपरोक्त विधि के अनुसार पाक तैयार करें।
नोटः बड़ी इलायची के गुणधर्म वही हैं जो छोटी इलायची के होते हैं ऐसा द्रव्य-गुण के विद्वानों का मानना है। अतः बड़ी इलायची भी छोटी के बराबर ही फायदा करेगी। बड़ी इलायची छोटी इलायची से बहुत कम दामों में मिलती है।
इस पाक के सेवन से वीर्यवृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है, वातरोग में लाभ होता है।

मेथी पाकः-

मेथी एवं सोंठ 320-320 ग्राम की मात्रा में लेकर दोनों का चूर्ण कपड़छन कर लें। 5 लीटर 120 मि.ली. दूध में 320 ग्राम घी डालकर उसमें ये चूर्ण मिला दें। यह सब एकरस होकर गाढ़ा हो जाय, तक उसे पकायें। उसके पश्चात उसमें 2 किलो 560 ग्राम शक्कर डालकर फिर से धीमी आँच पर पकायें। अच्छी तरह पाक तैयार हो जाने पर नीचे उतार लें। फिर उसमें लेंडीपीपर, सोंठ, पीपरामूल, चित्रक, अजवाइन, जीरा, धनिया, कलौंजी, सौंफ, जायफल, दालचीनी, तेजपत्र एवं नागरमोथ, ये सभी 40-40 ग्राम एवं काली मिर्च का 60 ग्राम चूर्ण डालकर हिलाकर ऱख लें।
यह पाक 40 ग्राम की मात्रा में अथवा पाचनशक्ति अनुसार सुबह खायें। इसके ऊपर दूध न पियें।
यह पाक आमवात, अन्य वातरोग, विषमज्वर, पांडुरोग, पीलिया, उन्माद, अपस्मार, प्रमेह, वातरक्त, अम्लपित्त, शिरोरोग, नासिकारोग, नेत्ररोग, सूतिकारोग आदि सभी में लाभदायक है। यह पाक शरीर के लिए पुष्टिकारक, बलकारक एवं वीर्य वर्धक है।

सूंठी पाकः-

320 ग्राम सोंठ और 1 किलो 280 ग्राम मिश्री या चीनी को 320 ग्राम घी एवं इससे चार गुने दूध में धीमी आँच पर पकाकर पाक तैयार करें।
इस पाक के सेवन से मस्तकशूल, वातरोग, सूतिकारोग एवं कफरोगों में लाभ होता है। प्रसूति के बाद इसका सेवन लाभदायी है।

अंजीर पाकः-

500 ग्राम सूखे अंजीर लेकर उसके 6-8 छोटे-छोटे टुकड़े कर लें। 500 ग्राम देशी घी गर्म करके उसमें अंजीर के वे टुकड़े डालकर 200 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिला दें। इसके पश्चात उसमें बड़ी इलायची 5 ग्राम, चारोली, बलदाणा एवं पिस्ता 10-10 ग्राम तथा 20 ग्राम बादाम के छोटे-छोटे टुकड़ों को ठीक ढंग से मिश्रित कर काँच की बर्नी में भर लें। अंजीर के टुकड़े घी में डुबे रहने चाहिए। घी कम लगे तो उसमें और ज्यादा घी डाल सकते हैं।
यह मिश्रण 8 दिन तक बर्नी में पड़े रहने से अंजीरपाक तैयार हो जाता है। इस अंजीरपाक को प्रतिदिन सुबह 10 से 20 ग्राम की मात्रा में खाली पेट खायें। शीत ऋतु में शक्ति संचय के लिय यह अत्यंत पौष्टिक पाक है। यह अशक्त एवं कमजोर व्यक्ति का रक्त बढ़ाकर धातु को पुष्ट करता है।

अश्वगंधा पाकः-

अश्वगंधा एक बलवर्धक व पुष्टिदायक श्रेष्ठ रसायन है। यह मधुर व स्निग्ध होने के कारण वात का शमन एवं रक्तादि सप्त धातुओं का पोषण करने वाला है। सर्दियों में जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। तब अश्वगंधा से बने हुए पाक का सेवन करने से पूरे वर्ष शरीर में शक्ति, स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है।

विधिः-
480 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को 6 लीटर गाय के दूध में, दूध गाढ़ा होने तक पकायें। दालचीनी (तज), तेजपत्ता, नागकेशर और इलायची का चूर्ण प्रत्येक 15-15 ग्राम मात्रा में लें। जायफल, केशर, वंशलोचन, मोचरस, जटामासी, चंदन, खैरसार (कत्था), जावित्री (जावंत्री), पीपरामूल, लौंग, कंकोल, भिलावा की मींगी, अखरोट की गिरी, सिंघाड़ा, गोखरू का महीन चूर्ण प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। रस सिंदूर, अभ्रकभस्म, नागभस्म, बंगभस्म, लौहभस्म प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। उपर्युक्त सभी चूर्ण व भस्म मिलाकर अश्वगंधा से सिद्ध किये दूध में मिला दें। 3 किलो मिश्री अथवा चीनी की चाशनी बना लें। जब चाशनी बनकर तैयार हो जाय तब उसमें से 1-2 बूँद निकालकर उँगली से देखें, लच्छेदार तार छूटने लगें तब इस चाशनी में उपर्युक्त मिश्रण मिला दें। कलछी से खूब घोंटे, जिससे सब अच्छी तरह से मिल जाय। इस समय पाक के नीचे तेज अग्नि न हो। सब औषधियाँ अच्छी तरह से मिल जाने के बाद पाक को अग्नि से उतार दें।

परीक्षणः-
पूर्वोक्त प्रकार से औषधियाँ डालकर जब पाक तैयार हो जाता है, तब वह कलछी से उठाने पर तार सा बँधकर उठता है। थोड़ा ठंडा करके 1-2 बूँद पानी में डालने से उसमें डूबकर एक जगह बैठ जाता है, फलता नहीं। ठंडा होने पर उँगली से दबाने पर उसमें उँगलियों की रेखाओं के निशान बन जाते हैं।

पाक को थाली में रखकर ठंडा करें। ठंडा होने पर चीनी मिट्टी या काँच के बर्तन में भरकर रखें। 10 से 15 ग्राम पाक सुबह शहद अथवा गाय के दूध के साथ लें।
यह पाक शक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक, स्नायु व मांसपेशियों को ताकत देने वाला एवं कद बढ़ाने वाला एक पौष्टिक रसायन है। यह धातु की कमजोरी, शारीरिक-मानसिक कमजोरी आदि के लिए उत्तम औषधि है। इसमें कैल्शियम, लौह तथा जीवनसत्व (विटामिन्स) भी प्रचुर मात्रा में होते हैं।
अश्वगंधा अत्यंत वाजीकर अर्थात् शुक्रधातु की त्वरित वृद्धि करने वाला रसायन है। इसके सेवन से शुक्राणुओं की वृद्धि होती है एवं वीर्यदोष दूर होते हैं। धातु की कमजोरी, स्वप्नदोष, पेशाब के साथ धातु जाना आदि विकारों में इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायी है।
यह पाक अपने मधुर व स्निग्ध गुणों से रस-रक्तादि सप्तधातुओं की वृद्धि करता है। अतः मांसपेशियों की कमजोरी, रोगों के बाद आने वाला दौर्बल्य तथा कुपोषण के कारण आनेवाली कृशता आदि में विशेष उपयुक्त है। इससे विशेषतः मांस व शुक्रधातु की वृद्धि होती है। अतः यह राजयक्षमा (क्षयरोग) में भी लाभदायी है। क्षयरोग में अश्वगंधा पाक के साथ सुवर्ण मालती गोली का प्रयोग करें। किफायती दामों में शुद्ध सुवर्ण मालती व अश्वगंधा चूर्ण आश्रम के सभी उपचार केन्द्रों व स्टालों पर उपलब्ध है।
जब धातुओं का क्षय होने से वात का प्रकोप होकर शरीर में दर्द होता है, तब यह दवा बहुत लाभ करती है। इसका असर वातवाहिनी नाड़ी पर विशेष होता है। अगर वायु की विशेष तकलीफ है तो इसके साथ 'महायोगराज गुगल' गोली का प्रयोग करें।

इसके सेवन से नींद भी अच्छी आती है। यह वातशामक तथा रसायन होने के कारण विस्मृति, यादशक्ति की कमी, उन्माद, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) आदि मनोविकारों में भी लाभदायी है। दूध के साथ सेवन करने से शरीर में लाल रक्तकणों की वृद्धि होती है, जठराग्नि प्रदीप्त होती है, शरीर की कांति बढ़ती है और शरीर में शक्ति आती है। सर्दियों में इसका लाभ अवश्य उठायें।

Friday, December 27, 2013

*** बैंकींग लूट के इतिहास की कहानी ***

बैंकींग लूट के इतिहास की कहानी
सब लोगो को, बैंक से उधार या लोन या फिर क्रेडिट कार्ड उपयोग करने की प्रणाली नहीं पता होने के कारण ३ तरह की गलतफहमी है

पहली ग़लतफ़हमी ये की बैंक आपका उधार में असली रूपया पैसा दे रहा है ।
दूसरी ग़लतफ़हमी ये की बैंक किसी दूसरे बंदे का पैसा आपको उधार या लोन दे रहा है । किसी दूसरे के पास ज्यादा पैसे थे उसने सोचा कि बैंक में रख देता हूँ ताकी थोडा बहुत ब्याज मिल जाये । और वो पैसे आपको लोन या उधार में मिल गये ।
तीसरी ग़लतफ़हमी ये है कि बैंक अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ पैसा आपको उधार देता है ।


सच्चाई का इन तीन बातों से कोई लेना देना है ही नहीं । अगर आप पूरी सच्चाई जानना चाहते तो पूरी कहानी पढे ।

(१) भूतकाल

कहानी शुरू होती है कई सालो पहले जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे । तक बैंकिंग सिस्टम नही था । सिर्फ अर्थ-शास्त्र था । आज अर्थ-शास्त्र को बैंकिंग सिस्टम और शेयर बाजार ने पूरी तरह से हथिया लिया है । ये सब कैसे हुआ ये जानते है ।

पहले सोने और चाँदी के सिक्के चलने लगे । जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होने लोगो से बोला की आप अपना सोना चाँदी हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे । जब भी कोई सोना चाँदी बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक "पेपर रसीद" मिल जाती थी । ये पेपर रसीद ही शुरूआती पेपर नोट थे । बैंकर लोगो को रसीद बनाना आसान था बजाय कि सोना खोदने की और लोगो को भी इन कागज के नोट को मार्केट में उपयोग करना आसान था ।

तब जितना सोना होता था उतनी ही रसीद होती थी ।

फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को पहला कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया ।

जो लोग बचत करते थे उसी सोने में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था । इस तरह बैंकर लोगो को पहली बार इतिहास में अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोडने का पहला प्रावधान मिला । क्योंकी वो उधार दे सकते थे इसका सबके बडा फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगो को हुआ क्योंकी अमीरो को बडी पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होने बडे बडे कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है । गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था ग़रीबों को ।

चलो चलते है दूसरे कदम पर जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने के चाल चली ।

एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा की वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास सोना होता है । अगर ऐसा हो जाये की वो उस सोने के नाम की नोट देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नही तो कैसे रहेगा । ये था दूसरा प्रावधान जिससे काफी सारी ऐसी बैंक नोट बनाये गये जिसके समानांतर कोई सोना था ही नही ।

लोगो को इस लूट के बारे में पता ही नही चल पाया क्योंकी लोग अब सोने के सिक्को में लेनदेन करते ही नही थे , वो तो कागज के नोट से ही लेनदेन करते थे । और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना सोना बैंक से निकलवाते नही थे । मान लो अगर सारे लोग अपना सोना बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकी उसने जितने नोट (रसीद ) बाँट रखी है उतना सोना तो है ही नही बैंक में ।

इस दूसरे कदम के चलते दुनिया के अमीर लोग महाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे सोने के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक असली सोने से कई गुणा ज्यादा की रसीदे (नोट) देकर इन अमीर को बडे बडे लोन सस्ती ब्याज दरों पर देती थी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे बडे कारखाने लगाये ।

इसके कारण गरीब और ज्यादा गरीब हो गया । कैसे ? अरे भाई मान लो १०० लोग है हर एक के पास १ किलो सोना है । पूरी अर्थव्य्वस्था है १०० किलो सोने की और हर एक बंदे का मार्केट में रूतबा १% का है। अब बैंकर लोगो ने ५०० किलो की रसीद बना दी है और ४०० किलो की रसीद २ अमीर लोगो को दे दी । इस कारण से ९८ गरीब लोगो के पास ९८ किलो सोना है और बाकी २ अमीर लोगो से पास ४०२ किलो सोना । यानी जिस आदमी में का रूतबा १% का था वो अब 0.2% हो गया । यानी बिना किसी मेहनत से बैंक की कृपा से 2 अमीर बंदे 1% के ४०.२% पहुँच गये (४० गुणा बडत) और ९८ गरीब बंदे १% से ०.२% पर लुडक गये (५ गुणा निचे) ।

जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है ।

इन दोनो कदमों के बाद बडते है तीसरे कदम की ओर ।

तीसरे कदम में ये हुआ की सरकार ने पुराने बैंक खतम कर दिये और सोने चाँदी के सिक्को की जगह पेपर नोट (कागज के नोट) को ही मुख्य करंसी मान लिया । नये बैंक बने जो इस पेपर नोट को रखते थे ।

फिर पेपर नोट चलने लगे । जब पेपर नोट थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होने लोगो से बोला की आप अपना पेपर नोट हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे । जब भी कोई पेपर नोट बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक "बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड" मिल जाती था । ये रसीद ही शुरूआती "बैंक मनी" थे ।

बैंकर लोगो को “बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड” बनाना आसान था बजाय कि नोट छापने की और लोगो को भी इन "बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड" को मार्केट में उपयोग करना आसान था ।

तब जितना "पेपर मनी" होता था उतनी ही "बैंक मनी" (यानी डीजीटल मनी) होती थी ।

फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को चौथा कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया ।

जो लोग बचत करते थे उसी पैसे में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था । इस तरह बैंकर लोगो को फिर से अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोडने का प्रावधान मिला । क्योंकी वो उधार दे सकते थे इसका सबके बडा फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगो को हुआ क्योंकी अमीरो को बडी पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होने बडे बडे कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है । गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था गरीबो को ।

चलो चलते है पाँचवे कदम पर जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने के चाल चली ।

एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा की वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास पेपर नोट होता है । अगर ऐसा हो जाये की वो उस रूपये के नाम की “डीजिटल मनी (चेक, लोन)” देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नही तो कैसे रहेगा । ये था पाँचवा कदम जिससे काफी सारी ऐसी बैंक मनी बनाये गये जिसके समानांतर कोई रूपया था ही नही ।

लोगो को इस लूट के बारे में पता ही नही चल पाया क्योंकी लोग अब पेपर नोट में लेनदेन करते ही नही थे , वो तो “चेक, डेबिट कार्ड , क्रेडिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिग” से ही लेनदेन करते थे । और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना नोट बैंक से निकलवाते नही थे । मान लो अगर सारे लोग अपना पैसा बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकी उसने जितने डिजीटल मनी बाँट रखी है उतने कागज के नोट तो है ही नही बैंक में ।

(२) वर्तमान

आज दिल्ली जैसे महानगरो में रहने वाले लोगो की सेलेरी एटीएम कार्ड के अंदर आती है और कार्ड से ही खर्च हो जाती है । दिल्ली वालो को बस सब्जी और आटो वाले के लिये ही पेपर नोट की जरूरत पडती है ।

इस पाँचवे कदम के के चलते दुनिया के महाअमीर लोग और भी महामहाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे नोट के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक इनको असली नोट से कई गुणा ज्यादा की बैंक मनी देकर इन अमीर को बडे बडे लोन सस्ती ब्याज दरों पर देने लगी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे बडे कारखाने लगाये ।

इसके कारण गरीब और गरीब हो गया । कैसे ? वो तो उपर बताया ही है । जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है ।

अब चलते है हमारे असली सवाल की ओर ।

पहली ग़लतफ़हमी ये की बैंक आपका उधार में असली रूपया पैसा दे रहा है ।
दूसरी ग़लतफ़हमी ये की बैंक किसी दूसरे बंदे का पैसा आपको उधार या लोन दे रहा है । किसी दूसरे के पास ज्यादा पैसे थे उसने सोचा कि बैंक में रख देता हूँ ताकी थोडा बहुत ब्याज मिल जाये । और वो पैसे आपको लोन या उधार में मिल गये ।
तीसरी ग़लतफ़हमी ये है कि बैंक अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ पैसा आपको उधार देता है ।


ये तीनो बाते गलत है, मै बताता हूँ की असलीयत में क्या होता है। माना आपको २००० रूपये के केमरे की जरूरत है और आप किसी शोप पर क़ेडिट कार्ड उपयोग करते हो तो बैंक आपको कोई असली रूपया नही देता है । वो आपके खाते में लिख देगा -२००० (माइनस २ हजार) और दुकान वाले के खाते में लिख देगा +२००० ! चाहे आप लोन लो या किसी भी प्रकार का उधार, बैंक वाले आपको असली के नोट नही देते है वो आपको डीजीटल मनी देते है जिसका कोई अस्तित्व ही नही है ।

आज हमारी अर्थव्यवस्था में ५% केश है और बाकी ९५% डीजीटल मनी है जो की हमारे बैंको ने मनमाने तरीके से मार्केट मे डाली है । ये सारा पैसा कंपुटर में ही अस्तित्व रखाता है । हमको पैसा कमाने में बहुत मेहनत लगती है लेकिन बैंक वाले बटन दबा कर मनचाही ”बैंक मनी” अमीर लोगो को धंधे खोलने के नाम पर दे देती है जिसको हमे वापस कमाने के लिये इन कंपनीयों के अंदर काम करना पडता है ।

आपको जानकर आश्चर्य होगा की ये सब एक प्रणाली के अंतर्गत होता है जिसको नाम दिया गया है - ”Fractional Reserve System” !

(४) Fractional Reserve System

दुनिया के सारे देशो में एक केंद्रिय बैंक होता है । जैसे युके में बैंक ओफ इंग्लैंड है, भारत में आरबीआई है अमेरीका में फेड है ।

ये केंद्रीय बैंक अपने अधीन बैंको के साथ ही Fractional Reserve System को चलाते है ।

हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते है पर बैंकिंग सिस्टम और उसकी प्रणाली में कोई लोकतंत्र नही है । FRS में जो भी नया पैसा बैंक पैदा करती है वो सारा पैसा उधार के रूप में पैदा होता है और उधार चुकाने पर खतम हो जाता है ।

FRS को समझना बहुत आसान है । मान लो रामू ने १०० रूपये (पेपर नोट) बैंक ने जमा किये । तो बैंक उसमें से ५ रूपये रख लेती है बाकी ९५ (डीजीटल मनी) वो किसी को लोन वो श्यामू को देती है । श्यामू इस लोन से मीरा से सामान लेता है, मीरा बैंक में ही ९५ लाकर जमा कर देती है ।

मीरा ने जो पैसे बैंक में डाले वो बैंक के ही थे जिसे हम बैंक मनी बोलते है, दिक्कत यहाँ से चालू होती है जब बैंक इस ९५ को भी नई जमा पूँजी मान लेती है और फिर से इसे लोन के लिये आगे कर देती है । इस बार बैंक ९५ में से ४.२५ अपने पास रख लेती है और बाकी के ९०.७५ रूपये फिर से लोन देती है । इस प्रकार बैंक ने दो बार लोन देकर १०० रूपये के १०० + ९५ + ९०.७५ = २८५.७५ रूपये दिखा दिये । बार बार इसी चक्र को बरा बार चलाया जाये तो होते है २००० रूपये ।

इस प्रकार जब भी बैक में १०० असली पैसा जमा होने पर बैंक २००० रूपया बना देती है । १९०० रूपया उधार के रूप में बनाया गया है । ये १९०० रूपया डीजीटल मनी है जो बैंक अपनी मनमानी तरीके से बाँटती है ।

भारत की सारी जनता उधार को कभी भी नही चुका सकती क्योंकी उधार ब्याज के साथ चुकाना पडता है और सारी जनता को ब्याज के साथ चुकाने के लिये जितनी डिजिटल मनी है उससे ज्यादा मनी लानी पडेगी । फिर से नई मनी (रूपया) बनाना पडेगा । बैंक नया रूपया उधार के रूप में ही बनाता है तो ये कभी उधार चुकने वाला नही है ।

आसानी से समझने के लिये पूरी दुनिया को एक गाँव मान ले, और सोने के सिक्को को रूपया । अब मान लो पूरी दुनिया का सोना १०० किलो ही है जो सारा का सारा उधार के रूप में बँट गया तो पूरी जनता को ११० किलो सोना लौटाना पडेगा जो की संभव ही नही है ।

जैसा की मैने बताया की जब भी बैंक नया लोन देती है वो डीजीटल मनी के रूप में नया पैसा पैदा करता है, इसके अलावा एक सच ये भी है की जब लोन चुकाया जाता है तो पैदा अर्थव्यवस्था से खतम भी होता है । अगर भारत की जनता किसी जादू से लोन चुका दे तो भारत की ९५% पूँजी खतम हो जायेगी ।

इसी बैंकींग सिस्टम ने ही अमीरो को महाअमीर और गरीबो को महागरीब बना दिया है । बडे हुये हाउसिंग प्राईज का जिम्मेदार भी यही सिस्टम है ।

(३)भविष्य

अब धीरे धीरे हमारा सिस्टम आखरी और छटे कदम की ओर जा रहा है । इस सिस्टम में जिस तरीके से सोने चाँदी के सिक्के गायब कर दिये गये उसी तरीके से पेपर नोट भी गायब कर दिये जायेंगे । हमें एक केशलेश (cashless) समाज की ओर धकेला जा रहा है । जहाँ पर अमीरो और गरीबो के बीच की खाई कभी नही भर पायेगी । सारी अर्थव्यवस्था की नकेल बैंकर माफीया लोग के साथ में आयेगी ।

यह मेरा पहला लेख है, भाषा को बहुत ज्यादा आसान बनाने की कोशिश की गई है । इस विषय पर मैं लगातार शोध कर रहा हूँ हो सकता है मेरी कोई बात थोडी सी गलत हो लेकिन मोटा मोटा आप ये मान ले की बैंकिंग सिस्टम को बैंकर माफिया चला रहे है । आरबीआई की नकेल भी उन्ही के साथ में है ।

आप मेरा विडीयो देख सकते हो

Tuesday, December 24, 2013



ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन। जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है वो जरा इस बात पर विचार करिए।सितंबर,अक्टूबर,नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ,8वाँ,नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है।ये क्रम से 9वाँ,,10वाँ,11वां और बारहवाँ महीना है।हिन्दी में सात को सप्त,आठ को अष्ट कहा जाता है,इसे अङ्ग्रेज़ी में sept(सेप्ट) तथा oct(ओक्ट) कहा जाता है।इसी से September तथा October बना।नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के "नव" को ले लिया गया है तथा दस अङ्ग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे December बन गया।


ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था।इसका एक प्रमाण और है।जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है???? इसका उत्तर ये है की "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना।चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया।

आलू ऐसे खाएंगे तो कम होगा मोटापा, इन बड़े रोगों में करेगा दवा का काम

आलू एक गुणों से भरी स्वादिष्ट सब्जी है। इसका वानस्पतिक नाम सोलेनम टुबेरोसम है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक अनुसंधान से यह निष्कर्ष निकाला कि पेरू के किसान आज से लगभग 7000 साल पहले से आलू उगा रहे हैं । सोलहवीं सदी में स्पेन ने अपने दक्षिण अमेरिकी उपनिवेशों से आलू को यूरोप पहुंचाया उसके बाद ब्रिटेन जैसे देशों ने आलू को दुनिया भर मे लोकप्रिय बना दिया। आज भी आयरलैंड तथा रूस की अधिकांश जनता आलू पर निर्भर है ।
भारत में यह सब से लोकप्रिय सब्जी है। पारंपरिक तौर पर आलू का इस्तेमाल आदिवासी अनेक फार्मुलों में सदियों से करते चले आ रहें है। मध्यप्रदेश के पातालकोट घाटी और गुजरात के डांग जिले में आदिवासी आलू को सब्जी के तौर पर इस्तेमाल करने के अलावा अनेक हर्बल फॉर्मुलों में भी करते है। इसका वानस्पतिक नाम सोलेनम टुबेरोसम है। चलिए जानते हैं 10 आदिवासी हर्बल फार्मुलों को और जाने आदिवासियों के इस हर्बल खजाने के बारे.....

आलू के औषधीय गुणों संदर्भ में परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 16 सालों से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।

सौंदर्य प्रसाधन- आलूओं का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन के लिए कई तरह से किया जाता है। ताजे आलू मुहांसो और ब्लेक हेड्स पर लगाने से आराम मिलता है। ताजे आलूओं के रस से चेहरा धोने से चेहरे से कई तरह के दाग दूर हो जाते हैं। ताजे आलू लेकर आंखो के ऊपर हल्का हल्का रखकर मालिश की जाए और रगड़ा जाए तो आंखों के चारों तरफ आए कालेपन से निजात मिल जाती है। आंखों के नीचे सूजन आने या गोल हो जाने पर कच्चा आलू रखने से आराम मिलता है।

उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर)- (डांग)गुजरात के हर्बल जानकारों के अनुसार उच्च रक्तचाप से जुड़े विकारों के लिए रोगियों को उबले आलूओं का सेवन कराना चाहिए। नई शोधों के अनुसार में आलू में पोटेशियम पाया जाता है जो ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाने के लिए मददगार होता है।

बवासीर- ताजे आलूओं का रस बवासीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है। आदिवासियों के अनुसार बवासीर होने पर रोगी को प्रतिदिन एक गिलास कच्चे आलू का रस का सेवन करना चाहिए और आलू के रस को प्रभावित अंग पर लेपित भी करना चाहिए।

मस्स- अक्सर गर्दन और कांख पर लोगों को छोटे-छोटे मस्से निकल आते हैं, पातालकोट के हर्बल जानकारों के अनुसार कटे हुए आलू के हिस्से को प्रतिदिन दिन में 4-5 बार इन मस्सों पर लगाया जाए तो कुछ दिनों बाद मस्सा अपने आप त्वचा से टूटकर अलग हो जाता है। आलू में पोटेशियम और विटामिन पाए जाते है जो घाव को सुखाने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

वजन कम करना- उबले आलूओं पर हल्का सा नमक छिड़क दिया जाए और उस व्यक्ति को दिया जाए जो वजन कम करना चाहता है। आदिवासियों के अनुसार ये गलत बात है कि आलू को मोटापा बढाने में मदद करने वाला कंद माना जाता है। वजन आलूओं की वजह से नहीं बढता बल्कि आलू को तलने के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले तेल, घी आदि आलू को बदनाम कर जाते हैं। कच्चे आलू या आलू जिन्हें तेल, घी आदि के बगैर पकाया जाए, खाद्य पदार्थ के तौर पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं और इनकी मदद से वजन भी कम किया जा सकता है क्योंकि इनमें कैलोरी के नाम पर कुछ खास नहीं होता है।

आलू ऐसे खाएंगे तो कम होगा मोटापा, इन बड़े रोगों में करेगा दवा का काम

आलू एक गुणों से भरी स्वादिष्ट सब्जी है। इसका वानस्पतिक नाम सोलेनम टुबेरोसम है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक अनुसंधान से यह निष्कर्ष निकाला कि पेरू के किसान आज से लगभग 7000 साल पहले से आलू उगा रहे हैं । सोलहवीं सदी में स्पेन ने अपने दक्षिण अमेरिकी उपनिवेशों से आलू को यूरोप पहुंचाया उसके बाद ब्रिटेन जैसे देशों ने आलू को दुनिया भर मे लोकप्रिय बना दिया। आज भी आयरलैंड तथा रूस की अधिकांश जनता आलू पर निर्भर है ।
भारत में यह सब से लोकप्रिय सब्जी है। पारंपरिक तौर पर आलू का इस्तेमाल आदिवासी अनेक फार्मुलों में सदियों से करते चले आ रहें है। मध्यप्रदेश के पातालकोट घाटी और गुजरात के डांग जिले में आदिवासी आलू को सब्जी के तौर पर इस्तेमाल करने के अलावा अनेक हर्बल फॉर्मुलों में भी करते है। इसका वानस्पतिक नाम सोलेनम टुबेरोसम है। चलिए जानते हैं 10 आदिवासी हर्बल फार्मुलों को और जाने आदिवासियों के इस हर्बल खजाने के बारे.....

आलू के औषधीय गुणों संदर्भ में परंपरागत हर्बल ज्ञान का जिक्र कर रहें हैं डॉ दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 16 सालों से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्यप्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहें हैं।

सौंदर्य प्रसाधन- आलूओं का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन के लिए कई तरह से किया जाता है। ताजे आलू मुहांसो और ब्लेक हेड्स पर लगाने से आराम मिलता है। ताजे आलूओं के रस से चेहरा धोने से चेहरे से कई तरह के दाग दूर हो जाते हैं। ताजे आलू लेकर आंखो के ऊपर हल्का हल्का रखकर मालिश की जाए और रगड़ा जाए तो आंखों के चारों तरफ आए कालेपन से निजात मिल जाती है। आंखों के नीचे सूजन आने या गोल हो जाने पर कच्चा आलू रखने से आराम मिलता है।

उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर)- (डांग)गुजरात के हर्बल जानकारों के अनुसार उच्च रक्तचाप से जुड़े विकारों के लिए रोगियों को उबले आलूओं का सेवन कराना चाहिए। नई शोधों के अनुसार में आलू में पोटेशियम पाया जाता है जो ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाने के लिए मददगार होता है।

बवासीर- ताजे आलूओं का रस बवासीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है। आदिवासियों के अनुसार बवासीर होने पर रोगी को प्रतिदिन एक गिलास कच्चे आलू का रस का सेवन करना चाहिए और आलू के रस को प्रभावित अंग पर लेपित भी करना चाहिए।

मस्स- अक्सर गर्दन और कांख पर लोगों को छोटे-छोटे मस्से निकल आते हैं, पातालकोट के हर्बल जानकारों के अनुसार कटे हुए आलू के हिस्से को प्रतिदिन दिन में 4-5 बार इन मस्सों पर लगाया जाए तो कुछ दिनों बाद मस्सा अपने आप त्वचा से टूटकर अलग हो जाता है। आलू में पोटेशियम और विटामिन पाए जाते है जो घाव को सुखाने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

वजन कम करना- उबले आलूओं पर हल्का सा नमक छिड़क दिया जाए और उस व्यक्ति को दिया जाए जो वजन कम करना चाहता है। आदिवासियों के अनुसार ये गलत बात है कि आलू को मोटापा बढाने में मदद करने वाला कंद माना जाता है। वजन आलूओं की वजह से नहीं बढता बल्कि आलू को तलने के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले तेल, घी आदि आलू को बदनाम कर जाते हैं। कच्चे आलू या आलू जिन्हें तेल, घी आदि के बगैर पकाया जाए, खाद्य पदार्थ के तौर पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं और इनकी मदद से वजन भी कम किया जा सकता है क्योंकि इनमें कैलोरी के नाम पर कुछ खास नहीं होता है।

Thursday, December 19, 2013

*** तुलसी एक 'दिव्य पौधा' ***


भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का बहुत महत्व है और इस पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। ऎसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं होता उस घर में भगवान भी रहना पसंद नहीं करते। माना जाता है कि घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा कलह और दरिद्रता दूर करता है। इसे घर के आंगन में स्थापित कर सारा परिवार सुबह-सवेरे इसकी पूजा-अर्चना करता है। यह मन और तन दोनों को स्वच्छ करती है। इसके गुणों के कारण इसे पूजनीय मानकर उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।

* लिवर (यकृत) संबंधी समस्या: तुलसी की 10-12 पत्तियों को गर्म पानी से धोकर रोज सुबह खाएं। लिवर की समस्याओं में यह बहुत फायदेमंद है।
* पेटदर्द होना: एक चम्मच तुलसी की पिसी हुई पत्तियों को पानी के साथ मिलाकर गाढा पेस्ट बना लें। पेटदर्द होने पर इस लेप को नाभि और पेट के आस-पास लगाने से आराम मिलता है।
* पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेट में गैस बनना आदि होने पर एक ग्लास पानी में 10-15 तुलसी की पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।
* बुखार आने पर : दो कप पानी में एक चम्मच तुलसी की पत्तियों का पाउडर और एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिन में दो से तीन बार यह काढा पीएं। स्वाद के लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।
* खांसी-जुकाम : करीब सभी कफ सीरप को बनाने में तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल पत्तियों को थोडी- थोडी देर पर अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत मिलती है। चाय की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है। इस पानी को आप गरारा करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
* सर्दी से बचाव : बारिश या ठंड के मौसम में सर्दी से बचाव के लिए तुलसी की लगभग 10-12 पत्तियों को एक कप दूध में उबालकर पीएं। सर्दी की दवा के साथ-साथ यह एक न्यूट्रिटिव ड्रिंक के रूप में भी काम करता है। सर्दी जुकाम होने पर तुलसी की पत्तियों को चाय में उबालकर पीने से राहत मिलती है। तुलसी का अर्क तेज बुखार को कम करने में भी कारगर साबित होता है।
* श्वास की समस्या : श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।
* गुर्दे की पथरी : तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो गई हो तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह महीने में फर्क दिखेगा।
* हृदय रोग : तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।
* तनाव : तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।
* मुंह का संक्रमण : अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।
* त्वचा रोग : दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।
तुलसी की ताजा पत्तियों को संक्रमित त्वचा पर रगडे। इससे इंफेक्शन ज्यादा नहीं फैल पाता।
* सांसों की दुर्गध : तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह खासा कारगर साबित होती है।
* सिर का दर्द : सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या दवा के तौर पर काम करती है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है।
* आंखों की समस्या : आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।
* कान में दर्द : तुलसी के पत्तों को सरसों के तेल में भून लें और लहसुन का रस मिलाकर कान में डाल लें। दर्द में आराम मिलेगा।
* ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने के लिए तुलसी के पत्तों का सेवन करना चाहिए।
* तुलसी के पांच पत्ते और दो काली मिर्च मिलाकर खाने से वात रोग दूर हो जाता है।
* कैंसर रोग में तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से काफी लाभ मिलता है।
* तुलसी तथा पान के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर देने से बच्चों के पेट फूलने का रोग समाप्त हो जाता है।
* तुलसी का तेल विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होता है।
* तुलसी का तेल मक्खी- मच्छरों को भी दूर रखता है।
* बदलते मौसम में चाय बनाते हुए हमेशा तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। वायरल से बचाव रहेगा।
* शहद में तुलसी की पत्तियों के रस को मिलाकर चाटने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीज का चूर्ण दही के साथ लेने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में वृध्दि होती है।

रोज सुबह तुलसी की पत्तियों के रस को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। तुलसी की केवल पत्तियां ही लाभकारी नहीं होती। तुलसी के पौधे पर लगने वाले फल जिन्हें अमतौर पर मंजर कहते हैं, पत्तियों की तुलना में कहीं अघिक फायदेमंद होता है। विभिन्न रोगों में दवा और काढे के रूप में तुलसी की पत्तियों की जगह मंजर का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। किंतु जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारा धातु के अंश होते हैं। जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। नई खोज से पता चला है इसमें कीनोल, एस्कार्बिक एसिड, केरोटिन और एल्केलाइड होते हैं। तुलसी पत्र मिला हुआ पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता डाला जाता है। तुलसी के स्पर्श से भी रोग दूर होते हैं। तुलसी पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में यह लाभकारी है। इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है। तुलसी ब्र्म्ह्चर्य की रक्षा करने एवं यह त्रिदोषनाशक है।

जय हिन्द, जय भारत !!

Sunday, December 15, 2013

**** बेबी (मिल्क) पावडर ****



बेबी (मिल्क) पावडर
हमारे देश में एक अमेरिकी कंपनी है - नेस्ले , नेस्ले बेबी पावडर (डब्बे का दूध) बेचती है | यूरोप के देशों में बेबी पावडर बिकता नहीं, यूरोप के देशों में बेबी पावडर को बेबी किलर कहते
हैं | मैंने यूरोप के कई देशों में देखा है, बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे रहते हैं और सरकार की तरफ से उन होर्डिंगों पर प्रचार किया जाता है कि "आप अपने बच्चे को बेबी पावडर मत खिलाईये" | क्यों ? क्योंकि इसमें जहर है, तो पुरे यूरोप में ये जो बेबी पावडर "बेबी किलर" कहा जाता है वही बेबी पावडर धड़ल्ले से भारत के बाजार में बिक रहा है और बहुत वर्षों तक इस देश में जो बेबी पावडर बिकता था, उसके डब्बे पर कुछ भी लिखा नहीं होता था, जब कुछ अच्छे लोगों ने इस मुद्दे को उठाया, हमारे जैसे विचार वाले कुछ डोक्टरों ने संसद पर दबाव बनाया तब भारत की सरकार ने सिर्फ इतना सा संसोधन कर दिया कि "कंपनियों को बेबी पावडर के डब्बे पर ये लिखना आवश्यक होगा कि माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम है", बस बात ख़त्म | होता ये कि भारत सरकार इन डब्बे के दूध को भारत में प्रतिबंधित कर देती, लेकिन नहीं | और भारत की पढ़ी-लिखी माताओं की हालत भी कुछ वैसी ही है, जो जितनी ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं वो उतना ही ज्यादा बेबी पावडर पिलाती हैं अपने बच्चों को | कभी-कभी तो मुझे ये लगता है कि जैसे भारत में जब से बेबी पावडर आया है तभी से बच्चे जवान हो रहे हैं, बिना बेबी पावडर के तो लोग बड़े ही नहीं हुए होंगे इस देश में ? कुछ ऐसा ही माहौल बनाया गया है इस देश में पिछले कुछ वर्षों से, और विरोधाभास क्या है इस देश में कि बाजार में बेबी पावडर भी बिक रहा है और "माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम है" इस विषय पर सेमिनार भी आयोजित किये जाते हैं, करोड़ो रूपये खर्च कर के | सीधा ये नहीं करते कि बेबी पावडर को प्रतिबंधित कर दे इस देश में | जिनको समझना चाहिए कि "माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम है" वो सेमिनार में आते नहीं और जिनको ये समझ है वो कोई कैम्पेन चलाते नहीं, ये इस देश का दुर्भाग्य है |

Friday, December 13, 2013

*** सर्दी, खांसी और जुखाम ****


सर्दी, खांसी और जुखाम ये एक हि परिवार के रोग है और इनके औषोधी (Medicine) भी लगभग एक है :-

आइये देखते है आपके रसोई मे सर्दी, खांसी और जुखाम के लिए क्या क्या औषोधी है !!!!!

यह तिन रोगोंके सबसे अछि औषोधी है अदरक या सोंठ, अदरक को ही दुसरे नाम मे सोंठ कहते है, जब अदरक सुख जाती है तो सोंठ बन जाती है ! दूसरी सबसे अछि औषोधी हल्दी है, तीसरी सबसे अछि औषोधी सर्दी-खासी और जुखाम के चूना है, चौथी सबसे अछि औषोधी दालचीनी है, पांचवी सबसे अछि औषोधी किसमिस है !
इसके साथ कुछ सहयोगी (Complementary) औषोधी है जो मुख्य (Main) औषोधी के साथ मिश्रित करके उपयोग किया जाता है वो है “काली मिर्च, तुलसी का पत्ता, सेहद” |

इन औषोधीयों को लेने का तरीका :

१. अदरक का रस निकाल लीजिये उसको हल्का गरम करके थोड़ा सेहद मिलाके सुबह खली पेट, दोपहर और शाम को एक चम्मच करके पि लीजिये !

२. अदरक के रस के साथ तुलसी का रस मिला लीजिये और हल्का गरम करके सेहद या गुड़ मिलाके सुबह खली पेट, दोपहर और शाम को एक चम्मच करके ले लीजिये !

३. एक ग्लास देशी गाय के दूध मे चौथाई चम्मच हल्दी मिलाके उसको कुछ देर उबालके रात को सोते समय लेना है, अगर दूध उपलब्ध नही है तो पानी मे भी ले सकते है ! अगर आपको काछी हल्दी मिलजाए तो और भी अच्छा है, छोटे टुकड़े करके दूध मे उबाल सकते है !

i) यह हल्दी टोन्सीलाईटिस (Tonsillitis) के भी सबसे अछि औषोधी है ! राजीव भाई के अनुसार बच्चो के टोन्सीलाईटिस का ऑपरेशन नही करना चाहिए – टोन्सीलाईटिस अगर Chronic है माने पुराना है तो हल्दी को सीधा इस्तेमाल करना है, चम्मच मे आधा हल्दी भरके उसको मुह के अन्दर ले जा के हल्दी डाल देना है फिर लार के साथ मिलके हल्दी अन्दर जाएगी, इस समय पानी नही देना है एक घंटे तक | हफ्ते मे अगर आप तिन दिन यह कर लिया, तो चौथे दिन बच्चे के टोन्सीलाईटिस ठीक हो जाएगी ! और टोन्सीलाईटिस अगर एक्यूट (Acute) है माने हाल फ़िलहाल मे हुआ है तो आप दूध मे या पानी मे हल्दी मिलाके लीजिये |

ii) (Throt Infection) गले की खराश, या गले मे किसी भी प्रकार का इन्फेक्शन हो, गला बैठ गया है, पानी पिने मे भी तकलीफ हो रही है, लार निकलने मे भी तकलीफ हो रही है, आवाज भरी हो गयी है .. इन सबके लिए एक ग्लास देशी गाय का दूध, एक चम्मच देशी गाय का घी और चौथाई चम्मच हल्दी को मिलाके कुछ देर उबालना है फिर उसको सिप सिप करके चाय की तरह पीना है शाम को एकबार |

४.गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोजा सुबह खाली पेट एक कप दही, डाल, गन्ने का रस या पानी मे मिलाके पिए!