Friday, February 28, 2014

आयुर्वेद से एसीडिटी का इलाज

आयुर्वेद से एसीडिटी का इलाज ::

___________________________________________________

• आंवला चूर्ण को एक महत्वपूर्ण औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। आपको एसीडिटी की शिकायत होने पर सुबह- शाम आंवले का चूर्ण लेना चाहिए।

• अदरक के सेवन से एसीडिटी से निजात मिल सकती हैं, इसके लिए आपको अदरक को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर गर्म पानी में उबालना चाहिए और फिर उसका पानी अदरक की चाय भी ले सकते हैं।

• मुलैठी का चूर्ण या फिर इसका काढ़ा भी आपको एसीडिटी से निजात दिलाएगा इतना ही नहीं गले की जलन भी इस काढ़े से ठीक हो सकती है।

• नीम की छाल को पीसकर उसका चूर्ण बनाकर पानी से लेने से एसीडिटी से निजात मिलती है। इतना ही नहीं यदि आप चूर्ण का सेवन नहीं करना चाहते तो रात को पानी में नीम की छाल भिगो दें और सुबह इसका पानी पीएं आपको इससे निजात मिलेगी।

• मुनक्का या गुलकंद के सेवन से भी एसीडिटी से निजात पा सकते हैं, इसके लिए आप मुनक्का को दूध में उबालकर ले सकते हैं या फिर आप गुलकंद के बजाय मुनक्का भी दूध के साथ ले सकते हैं।

• त्रि‍फला चूर्ण के सेवन से आपको एसीडिटी से छुटकारा मिलेगा, इसके लिए आपको चाहिए कि आप पानी के साथ त्रि‍फला चूर्ण लें या फिर आप दूध के साथ भी त्रि‍फला ले सकते हैं।
हरड: यह पेट की एसिडिटी और सीने की जलन को ठीक करता है ।

• लहसुन: पेट की सभी बीमारियों के उपचार के लिए लहसून रामबाण का काम करता है।

• मेथी: मेथी के पत्ते पेट की जलन दिस्पेप्सिया के उपचार में सहायक सिद्ध होते हैं।

• सौंफ:सौंफ भी पेट की जलन को ठीक करने में सहायक सिद्ध होती है। यह एक तरह की सौम्य रेचक होती है और शिशुओं और बच्चों की पाचन और एसिडिटी से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए भी मदद करती है।

• दूध के नियमित सेवन से आप एसीडिटी से निजात पा सकते हैं, इसके साथ ही आपको चाहिए कि आप चौलाई, करेला, धनिया, अनार, केला इत्यादि फलों का सेवन नियमित रूप से करें।

• शंख भस्म, सूतशेखर रस, कामदुधा रस, धात्री लौह, प्रवाल पिष्टी इत्यादि औषधियों को मिलाकर आपको भोजन के बाद पानी के साथ लेना चाहिए।

• इसके अलावा आप अश्वगंधा, बबूना , चन्दन, चिरायता, इलायची, अहरड, लहसुन, मेथी, सौंफ इत्यादि के सेवन से भी एसीडिटी की समस्या से निजात पा सकते हैं।

एसीडिटी दूर करने के अन्य उपाय
• अधिक मात्रा में पानी पीना
• पपीता खाएं
• दही और ककड़ी खाएं
• गाजर, पत्तागोभी, बथुआ, लौकी इत्यातदि को मिक्सत करके जूस लें।
• पानी में नींबू और मिश्री मिलाकर दोपहर के खाने से पहले लें।
• तनावमुक्त रहें और मानसिक रूप से स्वस्थ रहें।
• नियमित रूप से व्यायाम करें।
• दोपहर और रात के खाने के बीच सही अंतराल रखें।
• नियमित रूप से पुदीने के रस का सेवन करें ।
• तुलसी के पत्ते एसिडिटी और मतली से काफी हद तक राहत दिलाते हैं।
• नारियल पानी का सेवन अधिक करें।

एसीडिटी के कारण
• नियमित रूप से चटपटा मसालेदार और जंकफूड का सेवन
• अधिक एल्‍‍कोहल और नशीले पदार्थों का सेवन
• लंबे समय तक दवाईयों का सेवन
• शरीर में गर्मी बढ़-बढ़ जाना
• बहुत देर रात भोजन करना
• भोजन के बाद भी कुछ न कुछ खाना या लंबे समय तक भूखे रहकर एकदम बहुत सारा खाना खाना

एसीडिटी के लक्षण
• एसीडिटी के तुरंत बाद पेट में जलन होने लगती है।
• कड़वी और खट्टी डकारें आना
• लगातार गैस बनना और सिर दर्द की शिकायत
• उल्टी होने का अहसास और खाने का बाहर आने का अहसास होना
• थकान और भारीपन महसूस होना

Thursday, February 27, 2014

सत्तु

सत्तु अक्सर सात प्रकार के धान्य मिलाकर बनाया जाता है .ये है मक्का , जौ , चना , अरहर ,मटर , खेसरी और कुलथा .इन्हें भुन कर पीस लिया जाता है

आयुर्वेद के अनुसार सत्तू का सेवन गले के रोग, उल्टी, आंखों के रोग, भूख, प्यास और कई अन्य रोगों में फायदेमंद होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि पाया जाता है। यह शरीर को ठंडक पहुंचाता है।

जौ का सत्तू : यह जलन को शांत करता है। इसे पानी में घोलकर पीने से शरीर में पानी की कमी दूर होती है। साथ ही बहुत ज्यादा प्यास नहीं लगती। यह थकान मिटाने और भूख बढाने का भी काम करता है। यह डायबिटीज के रोगियों के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह वजन को नियंत्रित करने में भी मददगार होता है।

चने का सत्तू : चने के सत्तू में चौथाई भाग जौ का सत्तू जरूर मिलाना चाहिए। चने के सत्तू का सेवन चीनी और घी के साथ करना फायदेमंद होता है। इसे खाने से लू नहीं लगती।

कैसे करें सेवन

सत्तू को ताजे पानी में घोलना चाहिए, गर्म पानी में नहीं।

सत्तू सेवन के बीच में पानी न पिएं।

इसे रात्रि में नहीं खाना चाहिए।

सत्तू का सेवन अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए। इसका सेवन सुबह या दोपहर एक बार ही करना सत्तू का सेवन दूध के साथ नहीं करना चाहिए।

कभी भी गाढे सत्तू का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि गाढा सत्तू पचाने में भारी होता है। पतला सत्तू आसानी से पच जाता है ।

इसे ठोस और तरल, दोनों रूपों में लिया जा सकता है।

यदि आप चने के सत्तू को पानी, काला नमक और नींबू के साथ घोलकर पीते हैं, तो यह आपके पाचनतंत्र के लिए फायदेमंद होता है .।

सत्तु के सेवन से ज़्यादा तैलीय खाना खाने से होने वाली तालीफ़ ख़त्म हो जाती है और तेल निकल जाता है .।

इसमें बहुत पोषण होता है इसलिए बढ़ते बच्चों को ज़रूर दे ।

Wednesday, February 26, 2014

एक्जिमा (Eczema) की प्राकर्तिक चिकित्सा

एक्जिमा (Eczema) की प्राकर्तिक चिकित्सा -

एक्जिमा रोग शरीर की त्वचा को प्रभावित करता है और यह एक बहुत ही कष्टदायक रोग है। यह रोग स्थानीय ही नहीं बल्कि पूरे शरीर में हो सकता है।

एक्जिमा रोग होने के लक्षण :-

जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके शरीर पर जलन तथा खुजली होने लगती है। रात के समय इस रोग का प्रकोप और भी अधिक हो जाता है।
एक्जिमा रोग से प्रभावित भाग में से कभी-कभी पानी अधिक बहने लगता है और त्वचा भी सख्त होकर फटने लगती है। कभी-कभी तो त्वचा पर फुंसिया तथा छोटे-छोटे अनेक दाने निकल आते हैं।
एक्जिमा रोग खुश्क होता है जिसके कारण शरीर की त्वचा खुरदरी तथा मोटी हो जाती है और त्वचा पर खुजली अधिक तेज होने लगती है।

एक्जिमा रोग होने के कारण:-

एक्जिमा रोग अधिकतर गलत तरीके के खान-पान के कारण होता है। गलत खान-पान की वजह से शरीर में विजातीय द्रव्य बहुत अधिक मात्रा में जमा हो जाते हैं।
कब्ज रहने के कारण भी एक्जिमा रोग हो जाता है।
दमा रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार की औषधियां प्रयोग करने के कारण भी एक्जिमा रोग हो जाता है।
शरीर के अन्य रोगों को दवाइयों के द्वारा दबाना, एलर्जी, निष्कासन के कारण त्वचा निष्क्रिय हो जाती है जिसके कारण एक्जिमा रोग हो जाता है।

एक्जिमा रोग से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

औषधियों के द्वारा एक्जिमा रोग का कोई स्थायी इलाज नहीं हैं, लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
एक्जिमा रोग में सबसे पहले रोगी व्यक्ति को गाजर का रस, सब्जी का सूप, पालक का रस तथा अन्य रसाहार या पानी पीकर 3-10 दिन तक उपवास रखना चाहिए। फिर इसके बाद 15 दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए और इसके बाद 2 सप्ताह तक साधारण भोजन करना चाहिए। इस प्रकार से भोजन का सेवन करने की क्रिया उस समय तक दोहराते रहनी चाहिए जब तक की एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक न हो जाए।
इस रोगी से पीड़ित रोगी को फल, हरी सब्जी तथा सलाद पर्याप्त मात्रा में सेवन करने चाहिए तथा 2-3 लीटर पानी प्रतिदिन पीना चाहिए।
एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को नमक, चीनी, चाय, कॉफी, साफ्ट-ड्रिंक, शराब आदि पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को शाम के समय में लगभग 15 मिनट तक कटिस्नान करना चाहिए। इसके बाद पीड़ित रोगी को नीम की पत्ती के उबाले हुए पानी से स्नान करना चाहिए। इस पानी से रोगी को एनिमा क्रिया भी करनी चाहिए जिससे एक्जिमा रोग ठीक होने लगता है।
सुबह के समय में रोगी व्यक्ति को खुली हवा में धूप लेकर शरीर की सिंकाई करनी चाहिए तथा शरीर के एक्जिमा ग्रस्त भाग पर कम से कम 2-3 बार स्थानीय मिट्टी की पट्टी का लेप करना चाहिए। जब रोगी के रोग ग्रस्त भाग पर अधिक तनाव या दर्द हो रहा हो तो उस भाग पर भाप तथा गर्म-ठंडा सेंक करना चाहिए।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 1-2 दिन भापस्नान तथा गीली चादर लपेट स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद रोगग्रस्त भाग की कपूर को नारियल के तेल में मिलाकर मालिश करनी चाहिए या फिर सूर्य की किरणों के द्वारा तैयार हरा तेल लगाना चाहिए। रोगी व्यक्ति को इस उपचार के साथ-साथ सूर्यतप्त हरी बोतल का पानी भी पीना चाहिए।
नीम की पत्तियों को पीसकर फिर पानी में मिलाकर सुबह के समय में खाली पेट पीना चाहिए जिसके फलस्वरूप एक्जिमा रोग धीरे-धीरे ठीक होने लगता है।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार सूत्रनेति, कुंजल तथा जलनेति करना भी ज्यादा लाभदायक है। इन क्रियाओं को करने के फलस्वरूप एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में उपचार करने के साथ-साथ हलासन, मत्स्यासन, धनुरासन, मण्डूकासन, पश्चिमोत्तानासन तथा जानुशीर्षसन क्रिया करनी चाहिए। इससे उसका एक्जिमा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
एक्जिमा रोग को ठीक करने के लिए नाड़ी शोधन, भस्त्रिका, प्राणायाम क्रिया करना भी लाभदायक है। लेकिन इस क्रिया को करने के साथ-साथ रोगी व्यक्ति को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार भी करना चाहिए तभी एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज कराने के साथ-साथ कुछ खाने पीने की चीजों जैसे- चाय, कॉफी तथा उत्तेजक पदार्थ का परहेज भी करना चाहिए तभी यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
एक्जिमा रोग को ठीक करने के लिए हरे रंग की बोतल के सर्यूतप्त नारियल के तेल से पूरे शरीर की मालिश करनी चाहिए और धूप में बैठकर या लेटकर शरीर की सिंकाई करनी चाहिए। इससे एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 28 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन कम से कम 8 बार पीना चाहिए तथा रोगग्रस्त भाग पर हरे रंग का प्रकाश कम से कम 25 मिनट तक डालना चाहिए। इस प्रकार से कुछ दिनों तक उपचार करने से एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

Tuesday, February 25, 2014

आंवले के प्रयोग

आंवले के प्रयोग - (भाग नौ) -----
___________________________________________________

प्यास अधिक लगना : -आंवला और सफेद कत्था मुंह में रखने से प्यास का अधिक लगना ठीक हो जाता है।

जलोदर : -* आंवले के रस और सनाय को खाने से जलोदर में आराम मिलता है।
* आंवले को भूनकर काढ़ा बनाकर पीने से पेशाब खूब खुलकर आता है और रोगी को जलोदर की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।

लू का लगना : -* उबाले हुए आंवला का पानी पीने से लू नहीं लगती है।
* सुबह और शाम को आंवला का मुरब्बा खाने से लू से छुटकारा पाया जा सकता है।
* आंवले के मुरब्बे के साथ मुक्तापिष्टी का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक सेवन किया जाये तो धूप से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है।

रक्तप्रदर : -* महिलाओं के रक्तप्रदर से पीड़ित होने पर आंवले के बारीक चूर्ण का लेप गर्भाशय के मुंह पर करना चाहिए अथवा आंवले के पानी से रूई या साफ कपड़ा भिगोकर गर्भाशय के मुंह पर रखना चाहिए। इससे रक्तप्रदर नष्ट हो जाता है।
* 10 ग्राम आंवले के रस को 400 ग्राम पानी में काढ़ा बना लें। इस काढे़ से योनि को साफ करने से रक्त प्रदर में आराम मिलता है।
* 5 ग्राम मात्रा में आंवला को पीसकर 3 ग्राम मधु के साथ मिलाकर दिन में सुबह-शाम सेवन करने से रक्त प्रदर में आराम मिलता है।
* 25 ग्राम आंवले का चूर्ण 50 ग्राम पानी में डालकर रख लें। सुबह उठकर उसमें जीरे का 1 ग्राम चूर्ण और 10 ग्राम मिसरी मिलाकर पीने से रक्त प्रदर से आराम मिलता है।
* आंवले के 20 ग्राम रस में एक ग्राम जीरे का चूर्ण मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करें। ताजे आंवलों के उपलब्ध न होने पर सूखे आंवले का 20 ग्राम चूर्ण रात में भिगोकर सुबह सेवन करें और सुबह भिगोकर रात्रि में छानकर सेवन करें। इससे पित्तप्रकोप से होने वाले रक्तप्रदर में विशेष लाभ होता है।

बच्चों का मधुमेह रोग : -* आंवले के फूलों को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। 1-1 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से बच्चे के मधुमेह रोग में लाभ होता है।
* आंवले और जामुन की गुठलियों को कूट-पीसकर चूर्ण बनायें। रोजाना 2-2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से शर्करा आने में नियंत्रण होता है।

मधुमेह (डायबिटीज) : -* 10 ग्राम आंवले का रस, 1 ग्राम हल्दी, 3 ग्राम मधु मिलाकर सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।
* 5 ग्राम या 4 चम्मच ताजे आंवले के रस में 1 चम्मच शहद को मिलाकर रोजाना सुबह के समय सेवन करने से मधुमेह रोगी को फायदा होता है।
* 100 ग्राम सूखा आंवला और 100 ग्राम सौंफ को बारीक पीस लें। इसे 6-6 ग्राम सुबह-शाम खाने से 3-4 माहीने में मधुमेह रोग मिट जाता है।
* 2 चम्मच ताजे आंवले का रस शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन से मधुमेह में लाभ होता है।
* थोड़ा सूखा आंवला लेकर उसमें 100 ग्राम जामुन की गुठलियों को सुखाकर पीस लें। इस चूर्ण में से 1 चम्मच चूर्ण रोजाना बिना कुछ खाये पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह मे लाभ होता है।
* आंवले के फूलों को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। 1-1 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।

शीतपित्त : -* आंवले के थोड़े से पत्ते और नीम की 4-5 कलियां, दोनों को घी में तलकर 4-5 दिन तक सुबह के समय खाने से शीत पित्त का रोग हमेशा के लिए ठीक हो जाता है।
* आंवले के चूर्ण को गुड़ में मिलाकर खाने से शीतपित्त का रोग ठीक हो जाता है। चूर्ण और गुड़ की मात्रा 1 चम्मच और 5 ग्राम होनी चाहिए।

पेट के कीड़े : -* आधा चम्मच आंवले का रस 2 से 3 दिन तक पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
* ताजे आंवले के लगभग 60 ग्राम रस को 5 दिन तक पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) : -आंवले के मुरब्बे के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मुक्तापिष्टी को मक्खन या मलाई के साथ सुबह और शाम को सेवन करने से तिल्ली के बढ़ने के कारण होने वाली पित्त की जलन तथा आन्तरिक जलन में राहत प्राप्त होती है।

प्लेग रोग : -प्लेग के रोग को दूर करने के लिए सोना गेरू, खटाई, देशी कपूर, जहर मोहरा और आंवला इन सबको 25-25 ग्राम तथा पपीता के बीज 10 ग्राम लेकर इन सबको मिलाकर कूटकर बारीक चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को कागजी नींबू के रस में 3 घंटों तक घोटने के बाद मटर के बराबर गोलियां बना लें। उन गोलियों में से 1 गोली 7 दिनों में एक बार खायें। इससे रोग में लाभ होता है।

नाक के रोग : -* सूखे आंवलों को घी में मिलाकर तल लें। फिर इसे पानी के साथ पीसकर माथे पर लगाने से नाक में से खून आना रुक जाता है।
* सूखे आंवलों को पानी में भिगोकर रख दें। थोड़े मुलायम होने पर इनको पीसकर टिकिया सी बना लें। इस टिकिया को सिर के तालु पर बांधने से नाक में से खून आना रुक जाता है।

सभी प्रकार के दर्द : -आंवला को पीसकर प्राप्त रस में चीनी को मिलाकर चाटने से `पित्तज शूल´, जलन और रक्तपित्त की बीमारियों में लाभ पहुंचाती है।

घाव (व्रण) : -नीम की छाल, गुर्च, आमला, बाबची, एक भांग (एक पल), सोंठ, वायविडंग, पमार, पीपल, अजवायन, जीरा, कुटकी, खैर, सेंधानमक, जवाक्षार, हल्दी, दारूहल्दी, नागरमोथा, देवदार और कूठ आदि को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर उसे कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को घाव पर लगाने से रोग में आराम मिलता है।

पेट में दर्द : -* आंवले के रस में विदारीकंद का रस 10-10 मिलीलीटर शहद के साथ मिलाकर दें।
* आंवला, सनाय, हरड़, बहेड़ा और कालानमक को मिलाकर बारीक पीस लें, फिर नींबू के रस में छोटी-छोटी गोलियां बना लें, सुबह और शाम 1-1 गोली बनाकर खाने से पेट का दर्द कम और भूख बढ़ती है।

वीर्य की कमी : -एक बड़े आंवले के मुरब्बे को खाने से मर्दाना ताकत आती है।

नकसीर (नाक से खून का आना) : -* 50 ग्राम आंवले के रस में 25 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाता है।
* लगभग 200 ग्राम आंवला को पीसकर सिर के ऊपर मोटा-मोटा लेप करने से नकसीर (नाक से खून बहना) बंद हो जाती है।
* एक चम्मच मुलेठी और एक चम्मच आंवला के चूर्ण को मिलाकर दूध के साथ खाने से नकसीर ठीक हो जाती है।
* सूखे आंवले को रात को पानी में भिगोकर रख दें। रोजाना सुबह उस पानी से सिर को धोने से नकसीर (नाक से खून बहना) रुक जाती है। नकसीर के रोग में आंवले का मुरब्बा खाने से भी लाभ होता है। अगर नकसीर (नाक से खून बहना) बंद नहीं हो रहा हो तो आंवले के रस को नाक में डाले और इसको पीसकर सिर पर लेप करने से लाभ होता है। अगर किसी कारण से ताजे आंवले न मिले तो सूखे आंवलों को पानी में भिगोकर उस पानी को सिर पर लेप करने से दिमाग की गर्मी और खुश्की दूर होती है।
* जिन लोगों को प्राय: नकसीर होती रहती है वे सूखे आंवलों को रात को भिगोकर उस पानी से सुबह रोज सिर धोयें। आंवले का मुरब्बा खाएं। यदि नकसीर किसी भी प्रकार से बंद न हो तो आंवले का रस नाक में टपकाएं, सुंघाए और आंवले को पीसकर सिर पर लेप करें। यदि ताजा आंवला न मिले तो सूखे आंवलों को पानी में भिगोकर उस पानी को सिर पर लगाएं। इससे मानसिक गर्मी-खुश्की भी दूर होती है।
* जामुन, आम तथा आंवले को कांजी आदि से बारीक पीसकर मस्तक पर लेप करने से नाक से बहता खून रुक जाता है।
* नाक में आंवले का रस टपकाएं। ताजे आंवले नियमित खाएं। चीनी मिला आंवले का शर्बत सुबह-शाम पिलाएं"

अवसाद उदासीनता या सुस्ती : -रोजाना आंवले के मुरब्बे का सेवन करने से मानसिक अवसाद या उदासी दूर हो जाती है।

मूर्च्छा (बेहोशी) : -एक चम्मच आंवले का रस और 2 चम्मच घी को मिलाकर रोगी को पिलाने से बेहोशी दूर हो जाती है।

पेशाब में खून आना : -लगभग 12 ग्राम आंवला और 12 ग्राम हल्दी को मोटा-मोटा पीसकर रात को पानी में डालकर भिगो दें। सुबह इस पानी को छानकर पीने से पेशाब में खून आने का रोग दूर होता है।

योनि संकोचन : -* आंवला की छाल को 20 ग्राम की मात्रा में लेकर मोटा-मोटा पीसकर लगभग 250 ग्राम पानी में डालकर उबालें, जब पानी आधा बच जाये तब ठंडा करके योनि पर लगाने से योनि का ढीलापन दूर होकर योनि टाईट हो जाती है।
* आंवला को पकाकर काढ़ा बनाकर दही में मिलाकर योनि पर सुबह और शाम लगाने से लाभ मिलता है।

गुलाब विटामिन ए, बी 3, सी, डी और ई से भरपूर है।

गुलाब के नाम पर न जाने कितनी कविताएं पढ़ी होंगी आपने। गुलाब के रंग-बिरंगे फूल सिर्फ ड्रॉइंगरूम में फूलदान पर ही अच्छे नहीं लगते, बल्कि इसकी पंखुड़ियां भी बड़े काम की हैं। गुलाब जल का इस्तेमाल फेस मास्क में भी होता है और यह खाने को भी लज्जतदार बनाता है। गुलाब विटामिन ए, बी 3, सी, डी और ई से भरपूर है। इसके अलावा इसमें कैल्शियम, जिंक और आयरन की भी मात्र काफी होती है।

* गुलाब को यों ही फूलों का फूल नहीं कहा जाता। दिखने में यह फूल बेहद खूबसूरत है और इसकी हर पंखुड़ी में समाए हैं अनगिनत गुण। त्वचा को सुंदर बनाने से लेकर शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखने में गुलाब कितने काम आता है ।
* सुबह-सबेरे अगर खाली पेट गुलाबी गुलाब की दो कच्ची पंखुड़ियां खा ली जाएं, तो दिन भर ताजगी बनी रहती है। वह इसलिए क्योंकि गुलाब बेहद अच्छा ब्लड प्यूरिफायर है।
* अस्थमा, हाई ब्लड प्रेशर, ब्रोंकाइटिस, डायरिया, कफ, फीवर, हाजमे की गड़बड़ी में गुलाब का सेवन बेहद उपयोगी होता है।
* गुलाब की पंखुड़ियों का इस्तेमाल चाय बनाने में भी होता है। इससे शरीर में जमा अतिरिक्त टॉक्सिन निकल जाता है। पंखुड़ियों को उबाल कर इसका पानी ठंडा कर पीने पर तनाव से राहत मिलती है और मांसपेशियों की अकड़न दूर होती है।
* एक शीशी में ग्लिसरीन, नीबू का रस और गुलाब जल को बराबर मात्रा में मिलाकर घोल बना लें। दो बूंद चेहरे पर मलें। त्वचा में नमी और चमक बनी रहेगी और त्वचा मखमली-मुलायम बन जाएगी।

Monday, February 24, 2014

भारतीय संस्कृति की परम्पराओं में दीपक कलश स्वस्तिक और शंख का इतना महत्व आखिर क्यों ?

भारतीय संस्कृति की परम्पराओं में दीपक कलश स्वस्तिक और शंख का इतना महत्व आखिर क्यों ? जाने ---
___________________________________________________

किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति की गरिमा अपार है। इस संस्कृति में आदिकाल से ऐसी परम्पराएँ चली आ रही हैं, जिनके पीछे तात्त्विक महत्त्व एवं वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है। उनमें से मुख्य निम्न प्रकार हैं ।

दीपक

मनुष्य के जीवन में चिह्नों और संकेतों का बहुत उपयोग है। भारतीय संस्कृति में मिट्टी के दिये में प्रज्जवलित ज्योत का बहुत महत्त्व है।

दीपक हमें अज्ञान को दूर करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का संदेश देता है। दीपक अंधकार दूर करता है। मिट्टी का दीया मिट्टी से बने हुए मनुष्य शरीर का प्रतीक है और उसमें रहने वाला तेल अपनी जीवनशक्ति का प्रतीक है। मनुष्य अपनी जीवनशक्ति से मेहनत करके संसार से अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये ऐसा संदेश दीपक हमें देता है। मंदिर में आरती करते समय दीया जलाने के पीछे यही भाव रहा है कि भगवान हमारे मन से अज्ञान रूपी अंधकार दूर करके ज्ञानरूप प्रकाश फैलायें। गहरे अंधकार से प्रभु! परम प्रकाश की ओर ले चल।

दीपावली के पर्व के निमित्त लक्ष्मीपूजन में अमावस्या की अन्धेरी रात में दीपक जलाने के पीछे भी यही उद्देश्य छिपा हुआ है। घर में तुलसी के क्यारे के पास भी दीपक जलाये जाते हैं। किसी भी नयें कार्य की शुरूआत भी दीपक जलाने से ही होती है। अच्छे संस्कारी पुत्र को भी कुल-दीपक कहा जाता है। अपने वेद और शास्त्र भी हमें यही शिक्षा देते हैं- हे परमात्मा! अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर हमें ले चलो। ज्योत से ज्योत जगाओ इस आरती के पीछे भी यही भाव रहा है। यह है भारतीय संस्कृति की गरिमा।

कलश

भारतीय संस्कृति की प्रत्येक प्रणाली और प्रतीक के पीछे कोई-ना-कोई रहस्य छिपा हुआ है, जो मनुष्य जीवन के लिए लाभदायक होता है।

ऐसा ही प्रतीक है कलश। विवाह और शुभ प्रसंगों पर उत्सवों में घर में कलश अथवा घड़े वगैरह पर आम के पत्ते रखकर उसके ऊपर नारियल रखा जाता है। यह कलश कभी खाली नहीं होता बल्कि दूध, घी, पानी अथवा अनाज से भरा हुआ होता है। पूजा में भी भरा हुआ कलश ही रखने में आता है। कलश की पूजा भी की जाती है।

कलश अपना संस्कृति का महत्त्वपूर्ण प्रतीक है। अपना शरीर भी मिट्टी के कलश अथवा घड़े के जैसा ही है। इसमें जीवन होता है। जीवन का अर्थ जल भी होता है। जिस शरीर में जीवन न हो तो मुर्दा शरीर अशुभ माना जाता है। इसी तरह खाली कलश भी अशुभ है। शरीर में मात्र श्वास चलते हैं, उसका नाम जीवन नहीं है, परन्तु जीवन में ज्ञान, प्रेम, उत्साह, त्याग, उद्यम, उच्च चरित्र, साहस आदि हो तो ही जीवन सच्चा जीवन कहलाता है। इसी तरह कलश भी अगर दूध, पानी, घी अथवा अनाज से भरा हुआ हो तो ही वह कल्याणकारी कहलाता है। भरा हुआ कलश मांगलिकता का प्रतीक है।

भारतीय संस्कृति ज्ञान, प्रेम, उत्साह, शक्ति, त्याग, ईश्वरभक्ति, देशप्रेम आदि से जीवन को भरने का संदेश देने के लिए कलश को मंगलकारी प्रतीक मानती है। भारतीय नारी की मंगलमय भावना का मूर्तिमंत प्रतीक यानि स्वस्तिक।

स्वस्तिक

स्वस्तिक शब्द मूलभूत सु+अस धातु से बना हुआ है।
सु का अर्थ है अच्छा, कल्याणकारी,मंगलमय और अस का अर्थ है अस्तित्व, सत्ता अर्थात कल्याण की सत्ता और उसका प्रतीक है स्वस्तिक। किसी भी मंगलकार्य के प्रारम्भ में स्वस्तिमंत्र बोलकर कार्य की शुभ शुरूआत की जाती है।

स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदा:।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।

महान कीर्ति वाले इन्द्र हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है ऐसे गरूड़ भगवान हमारा मंगल करो। बृहस्पति हमारा मंगल करो।
यह आकृति हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों वर्ष पूर्व निर्मित की है। एकमेव और अद्वितीय ब्रह्म विश्वरूप में फैला, यह बात स्वस्तिक की खड़ी और आड़ी रेखा स्पष्ट रूप से समझाती हैं। स्वस्तिक की खड़ी रेखा ज्योतिर्लिंग का सूचन करती है और आड़ी रेखा विश्व का विस्तार बताती है। स्वस्तिक की चार भुजाएँ यानि भगवान विष्णु के चार हाथ। भगवान श्रीविष्णु अपने चारों हाथों से दिशाओं का पालन करते हैं।

स्वस्तिक अपना प्राचीन धर्मप्रतीक है। देवताओं की शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएँ इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक यानि स्वस्तिक। स्वस्तिक यह सर्वांगी मंगलमय भावना का प्रतीक है।

जर्मनी में हिटलर की नाजी पार्टी का निशान स्वस्तिक था। क्रूर हिटलर ने लाखों यहूदियों को मार डाला। वह जब हार गया तब जिन यहूदियों की हत्या की जाने वाली थी वे सब मुक्त हो गये। तमाम यहूदियों का दिल हिटलर और उसकी नाजी पार्टी के लिए तीव्र घृणा से युक्त रहे यह स्वाभाविक है। उन दुष्टों का निशान देखते ही उनकी क्रूरता के दृश्य हृदय को कुरेदने लगे यह स्वाभाविक है। स्वस्तिक को देखते ही भय के कारण यहूदी की जीवनशक्ति क्षीण होनी चाहिए। इस मनोवैज्ञानिक तथ्य के बावजूद भी डायमण्ड के प्रयोगों ने बता दिया कि स्वस्तिक का दर्शन यहूदी की भी जीवनशक्ति को बढ़ाता है। स्वस्तिक का शक्तिवर्धक प्रभाव इतना प्रगाढ़ है।

अपनी भारतीय संस्कृति की परम्परा के अनुसार विवाह-प्रसंगों, नवजात शिशु की छठ्ठी के दिन, दीपावली के दिन, पुस्तक-पूजन में, घर के प्रवेश-द्वार पर, मंदिरों के प्रवेशद्बार पर तथा अच्छे शुभ प्रसंगों में स्वस्तिक का चिह्न कुमकुस से बनाया जाता है एवं भावपूर्वक ईश्वर से प्रार्थना की जाती है कि हे प्रभु! मेरा कार्य निर्विघ्न सफल हो और हमारे घर में जो अन्न, वस्त्र, वैभव आदि आयें वह पवित्र बनें।

शंख -

शंख दो प्रकार के होते हैं- दक्षिणावर्त और वामवर्त। दक्षिणावर्त शंख दैवयोग से ही मिलता है। यह जिसके पास होता है उसके पास लक्ष्मीजी निवास करती हैं।
यह त्रिदोषनाशक, शुद्ध और नवनिधियों में एक है। ग्रह और गरीबी की पीड़ा, क्षय, विष, कृशता और नेत्ररोग का नाश करता है। जो शंख श्वेत चंद्रकांत मणि जैसा होता है वह उत्तम माना जाता है। अशुद्ध शंख गुणकारी नहीं है। उसे शुद्ध करके ही दवा के उपयोग मे लाया जा सकता है।

भारत के महान वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु ने सिद्ध करके दिखाया कि शंख बजाने से जहाँ तक उसकी ध्वनि पहुँचती है वहाँ तक रोग उत्पन्न करने वाले हानिकारक जीवाणु (बैक्टीरिया) नष्ट हो जाते हैं। इसी कारण अनादि काल से प्रातःकाल और संध्या के समय मंदिरों में शंख बजाने का रिवाज चला आ रहा है।

संध्या के समय शंख बजाने से भूत-प्रेत-राक्षस आदि भाग जाते हैं। संध्या के समय हानिकारक जीवाणु प्रकट होकर रोग उत्पन्न करते हैं। उस समय शंख बजाना आरोग्य के लिए फायदेमंद है।

गूँगेपन में शंख बजाने से एवं तुतलेपन, मुख की कांति के लिए, बल के लिए, पाचनशक्ति के लिए और भूख बढ़ाने के लिए, श्वास-खाँसी,जीर्णज्वर और हिचकी में शंखभस्म का औषधि की तरह उपयोग करने से लाभ होता है।

फटी एड़ियो का उपचार

फटी एड़ियो का उपचार:

शरीर में उष्णता या खुश्की बढ़ जाने, नंगे पैर चलने-फिरने, खून की कमी, तेज ठंड के प्रभाव से तथा धूल-मिट्टी से पैर की एड़ियां फट जाती हैं।

यदि इनकी देखभाल न की जाए तो ये ज्यादा फट जाती हैं और इनसे खून आने लगता है, ये बहुत दर्द करती हैं। एक कहावत शायद इसलिए प्रसिद्ध है-
जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।

घरेलू इलाज

* अमचूर का तेल 50 ग्राम, मोम 20 ग्राम, सत्यानाशी के बीजों का पावडर 10 ग्राम और शुद्ध घी 25 ग्राम। सबको मिलाकर एक जान कर लें और शीशी में भर लें। सोते समय पैरों को धोकर साफ कर लें और पोंछकर यह दवा बिवाई में भर दें और ऊपर से मोजे पहनकर सो जाएं। कुछ दिनों में बिवाई दूर हो जाएगी, तलवों की त्वचा साफ, चिकनी व साफ हो जाएगी।

* त्रिफला चूर्ण को खाने के तेल में तलकर मल्हम जैसा गाढ़ा कर लें। इसे सोते समय बिवाइयों में लगाने से थोड़े ही दिनों में बिवाइयां दूर हो जाती हैं।

चावल को पीसकर नारियल में छेद करके भर दें और छेद बन्द करके रख दें। 10-15 दिन में चावल सड़ जाएगा, तब निकालकर चावल को पीसकर बिवाइयों में रोज रात को भर दिया करें। इस प्रयोग से भी बिवाइयां ठीक हो जाती हैं।

* गुड़, गुग्गल, राल, सेंधा नमक, शहद, सरसों, मुलहटी व घी सब 10-10 ग्राम लें। घी व शहद को छोड़ सब द्रव्यों को कूटकर महीन चूर्ण कर लें, घी व शहद मिलाकर मल्हम बना लें। इस मल्हम को रोज रात को बिवाइयों पर लगाने से ये कुछ ही दिन में ठीक हो जाती हैं।

* रात को सोते समय चित्त लेट जाएं, हाथ की अंगुली लगभग डेढ़ इंच सरसों के तेल में भिगोकर नाभि में लगाकर 2-3 मिनट तक रगड़ते हुए मालिश करें और तेल को सुखा दें। जब तक तेल नाभि में जज्ब न हो जाए, रगड़ते रहें। यह प्रयोग सिर्फ एक सप्ताह करने पर बिवाइयां ठीक हो जाती हैं और एड़ियां साफ, चिकनी व मुलायम हो जाती हैं। एड़ी पर कुछ भी लगाने की जरूरत नहीं।

Saturday, February 22, 2014

लिपस्टिक

लिपस्टिक --
- प्राचीनकाल से ही होठों में कृत्रिम और अतिरिक्त सुन्दरता लाने के लिए प्राकृतिक लाली लगाने का प्रचलन चला आ रहा है। आजकल बनी-बनाई लिपस्टिक, लिप-ग्लॉस, लिप-पैंसिल आदि का प्रयोग बढ़ता गया।
-आज फिल्मों और सीरियल्स के बढ़ते असर से एक आम महिला भी लिपस्टिक का इस्तेमाल हमेशा करती है; जैसे की वे शो बिजनेस में हो. इसके हमेशा इस्तेमाल से होठों का रंग काला पड़ जाता है. लेकिन क्या आपकी लिपिस्टिक पूर्णतया सुरक्षित है, कहीं आपके होठों की लाली सचमुच कातिलाना तो नहीं, कहीं आपकी लिपिस्टिक में सीसा या लेड तो नहीं है।
- लिपस्टिक आदि कोस्मेटिक्स में पशु पक्षियों का रक्त भी मिलाया जाता है.
- 2007 में अमेरिका की केम्पेन फॉर सेफ कोस्मेटिक संस्था ने 33 विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों की लिपिस्टिक्स की एक निष्पक्ष प्रयोगशाला में जाँच करवाई। नतीजे सचमुच चौंकाने वाले थे। लगभग सभी कम्पनियों की लिपिस्टिक्स में काफी लेड पाया गया, जिनमें प्रमुख थी लॉरियल, कवरगर्ल (प्रोक्टर एण्ड गेम्बल) और 24 डालर की डायोर-एडिक्ट।
- एफ.डी.ए. ने आश्वासन दिया था कि वह अपनी अलग जाँच करवायेगी, पर उसने जल्दी ही अपने हाथ खींच लिए। दो वर्ष तक उपभोक्ता और यू.एस. सेनेटर्स एफ.डी.ए. पर दबाव बनाते रहे तब जाकर एफ.डी.ए. ने 2009 में जाँच करवाई और अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक की। इनके भी सभी नमूनों में भारी मात्रा में लेड पाया गया। लेकिन अभी तक एफ.डी.ए. ने उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये हैं। एफ.डी.ए. ने अभी तक लिपिस्टिक में लेड की मात्रा को लेकर कोई मानक नहीं बनाये हैं, न ही निर्माताओं को अपने उत्पादों पर लेड की मात्रा लिखने के संबन्ध में कोई नियम हैं और इन घातक रसायनों की जाँच करने के भी कोई नियम नहीं बने हैं।
- अहमदाबाद की कंज्यूमर एजुकेशन एण्ड रिसर्च सोसाइटी ने भी भारत में लिपिस्टिक्स बनाने वाली 19 कंपनियों की 43 ब्राँड्स की जाँच करवाई और सभी में लेड पाया गया। 10 रुपये की लिपस्टिक में 2 से 17 पी.पी.एम. और 100 रुपये से ज्यादा की लिपस्टिक में 11 से 23 पी.पी.एम. लेड पाया गया। सबसे ज्यादा लेड आइवोवी-10 (25 पी.पी.एम.) और लक्मे डी-414 (23 पी.पी.एम.) में पाया गया। ज्यादा देर चलने वाली लिपस्टिक में ज्यादा लेड पाया गया।
- एक सरल तरीका जिससे आप तुरन्त पता लगा सकती हैं कि आपकी लिपस्टिकि में लेड है या नहीं-
बस थोड़ी सी लिपिस्टिक अपनी हथेली पर लगाइये और उस पर एक सोने की अंगूठी को कुछ देर तक रगड़िये। यदि लिपिस्टिक काली पड़ने लगे तो समझ लीजिये कि आपकी लिपिस्टिक में लेड विद्यमान है।
- लेड के मामले में वैज्ञानिकों ने अभी तक कोई सुरक्षित मात्रा तय नहीं की है। यदि महिला दिन में कई बार और रोज लिपिस्टिक लगाती है तो लेड उनके शरीर में इकट्ठा होता रहता है। जो महिलायें नियमित लिपस्टिक लगाती हैं वे अपने जीवन में लगभग दो किलो लिपिस्टिक तो खा ही लेती हैं। लेड नाड़ी-तंत्र के लिए घातक विष है।
- लेड लड़कियों और स्त्रियों में शैक्षणिक क्षमता कम करता है, स्मृति कम करता है, आई.क्यू. कम करता है, चिढ़चिड़ापन बढ़ाता है और झगड़ालू प्रवृत्ति बढ़ाता है।
- लिपिस्टिक लगाने वाली लड़कियाँ हाई स्कूल परीक्षा में तो जैसे-तैसे उत्तीर्ण हो जाती हैं परन्तु उसके बाद अक्सर फेल होती हैं।
- स्त्रियों में लेड से मासिक-धर्म संबन्धी अनियमितताएँ, बाँझपन और गर्भपात होने की संभावना ज्यादा रहती है। लेड से पुरुषों में भी नपुंसकता, शुक्राणु-अल्पता, स्तंभन-दोष आदि रोग होते हैं।
- लेड गर्भवती स्त्रियों और उनके शिशुओं के लिए बहुत नुकसानदायक है क्योंकि गर्भावस्था में यह आसानी से शिशु के रक्त-तंत्र में प्रवेश कर जाता है।
- लेड वह खतरनाक रसायन है, जो शरीर में पहुंचकर रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है, यदि स्थिति ज्यादा गम्भीर हो जाती है तो यह कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी का रूप ले लेती है।
प्राकृतिक लाली-
- चार या पाँच गुलाब की पंखुड़ियों को अच्छी तरह मसल कर होठों पर दिन में दो या तीन बार लगाइये। आपके होठ मुलायम और गुलाबी हो जायेंगे।
- गुलाब की पंखुड़ियों को अच्छी तरह मसल कर आप दूध की मलाई में मिला कर लिप क्रीम बना सकते हैं। इसे होठों पर बीस मिनट के लिए लगायें और पानी से धोलें, आपके होठों की सुन्दरता में चार चाँद लग जायेंगे।
- इसी तरह आप होठों पर दिन में तीन-चार बार चुकन्दर का रस भी लगा सकते हैं और बीस मिनट बाद धो सकते हैं। इससे आपके होठों को जादुई रंगत और सुन्दरता मिलेगी।
- दही के मक्खन में केसर मिलाकर होंठों पर मलने से आपके होठ हमेशा गुलाबी रहेंगे।
- आप अपने होठों पर जैतून या लौंग का तेल या धी भी लगा सकते हैं। इससे होंठ चमक उठेंगे और दिन भर आपको होठों पर लिपक्रीम लगाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। यह कटे-फटे होठों का भी बढ़िया उपचार है।
- होठों को मुलायम बनाने के लिए आप जैतून के तेल, नीबू का रस या शहद में चीनी मिला कर भी लगा सकते हैं।
- नाभि में तेल लगाने से होठ मुलायम बने रहते है.
- प्राकृतिक लिपस्टिक के लिए सामग्री-
* लिपिस्टिक की खाली ट्यूब या कोई डिबिया।
* डबल बॉयलर या गर्म करने के लिए कोई बरतन।
* कसनी या ग्रेटर।
* एक चाय-चम्मच मधुमक्खी का मोम ( beeswax)।
* आधी चाय-चम्मच व्हीटजर्म ऑयल या ग्रेपसीड ऑयल।
* आधी चाय-चम्मच केस्टर ऑयल या विटामिन-ई ऑयल।
* एक चाय-चम्मच टाइटेनियम ऑक्साइड या जिंक ऑक्साइड।
* चार चाय-चम्मच माइका।
विधि -
मधुमक्खी के मोम को कसनी से कस लें और डबल बॉयलर में पिघलायें। आप इसे माइक्रोवेव ओवन में भी पिघला सकते हैं। पिधलने पर इसमें व्हीटजर्म ऑयल या ग्रेपसीड ऑयल और केस्टर ऑयल डाल कर अच्छी तरह मिलायें। अब बाकी चीजें भी मिलालें और गाढ़ा होने तक गर्म करें। अब इसे डिबिया या लिपिस्टिक की खाली ट्यूब में भर दें। आपकी बढ़िया लिपस्टिक तैयार है।

Friday, February 21, 2014

भारतीय गाय का अर्थ शास्त्र.




हर भारतीय जरूर पढे और शेयर करे:: भारतीय गाय का अर्थ शास्त्र........ हर इंसान को ज़ीने के लिए कम से कम 3
चीजों की जरूरत है. हवा, पानी और खाना. स्वच्छ हवा रही नहीं (पेट्रोल, डीज़ल),पीने का पानी मुफ्त मिलता नहीं शुद्धता की बात तो अलग है (रासायनिक खेती, ग्लोबल वार्मिंग,गिरता पानी का स्तर),खाने में भी जहर चूका है (रासायनिक खेती से भी और मिलावट करने वाले मुनाफाखोरी से भी). भारत इन तीनों समस्या से जूझ रहा है.
भारत की कुछ प्रमुख समस्याएँ :-
1. किसानों की आत्महत्या. (कारण हर चीज बाहर से खरीदना रासायनिक खेती में, जैसे बीज, खाद, कीट नाशक,
   ट्रैक्टर और उपज के समय मंडी में भाव न मिलना.)
2. बढ़ती महंगाई. (कारण पेट्रोल, डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट,अत्यधिक टैक्स)
3. गिरती अर्थव्यवस्था. (घर की जगह विदेशी से प्यार किसी भी वजह से)
4. बढ़ती गरीबी. (बढ़ती महंगाई, पेट्रोल,डीज़ल की बढ़ती कीमत, रुपये की गिरावट, अत्यधिक टैक्स)
5. बिजली की कमी.
6. पानी की कमी. इन सबका एक मुख्य कारण है, सब कुछ बाहर से खरीदना जैसे बीज, खाद,कीट नाशक, दवाइयां, पेट्रोल,      गैस. आप इसको इस तरह समझिये, की आपने अपने घर में खाना बनाया तो खाना कितना सस्ता पड़ता है,और जब आप रोज बाहर से खाना खरीदोगे तो खाना कितना महंगा पड़ेगा. रोज रोज बाहर से खरीदना मतलब अपनी सेहत भी खराब करना और पैसे भी लुटाना. इसी तरह भारत सरकार अपने देश में मौजूद पशुधन का इस्तेमाल करके, जब पेट्रोल,
खाद, कीटनाशक, गैस इत्यादि बाहर से रोज रोज खरीदेगी तो देश का रुपया सुधारने से तो रहा, उल्टा गर्द में ही जायेगा. आजादी के समय भारत का रुपया 1 अमरीकन डालर के बराबर था. 1988 में भी उदारीकरण की नीतिओ से पहले तक
भारत का रुपया 1 डालर के मुकाबले 8 रुपया था. यानी 41 साल आजादी में 8 गुना गिरावट और उदारीकरण के माहौल में 25 सालों में 8 गुना गिरावट से रुपया 62 रुपये प्रति डालर रह गया. उदारीकरण माने भारत ने अपने बाजार को खोल दिया, और हर चीज विदेशी यहाँ आकर बिकने लगी. नतीजा आपके सामने है. 1917 तक भारत डालर के मुकाबले 10 गुना मजबूत था माने 1 रुपया 10 डालर के बराबर था. आजादी के इन 66 सालों में हमारी कौन सी सरकार ने किस के लिए क्या काम किया, यह सोचने का विषय है. भारत के लिए कुछ किया ऐसा कहना बिलकुल गलत होगा. अभी भी देर नहीं हुई है.

1. गैस, पेट्रोल और बिजली मीथेन गैस का उत्पादन ही तेल के बढ़ते दामों का सही जवाब और विकल्प है. आज नहीं तो कल तेल के भण्डार खली हो ही जायेंगे, तब भी हमको मीथेन गैस के उत्पादन की तरफ ही आना पड़ेगा.मीथेन गैस बनती है जैविक कचरे से अथवा पशु के गोबर से जैसे देसी गाय का गोबर. भारत जैसे विकासशील देशों को चाहिए की वह मीथेन गैस
का उत्पादन करके अपनी ऊर्जा की जरूरत को पूरा करें. भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा पशुधन 50 करोड़ का है, जो 25 करोड़ टन का गोबर उत्पादन करता है. इसको इस्तेमाल करके हम सिर्फ रसोई गैस, बल्कि पेट्रोल में भी आत्मनिर्भर हो सकते हैं. LPG, केरोसिन, पेट्रोल इन तीनों को पूरी तरह से मीथेन गैस से हटाया जा सकता है. मीथेन गैस से बिजली भी बनती है जो की भारत के सारे गाँवों की बिजली की जरूरत को पूरा कर सकती है. मीथेन गैस बनने के बाद जो गोबर बचेगा वह खेती के लिए एक उपयुक्त खाद का भी काम करेगा जो कि रासायनिक फर्टिलाइजर पर भारत का खर्च होने वाला विदेशी मुद्रा को भी बचाएगा. उत्तर प्रदेश में गोबर गैस अनुसंधान स्टेशन ने स्थापित किया है की एक गाय एक साल
में पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस का उत्पादन करने के लिए गोबर देती है. कैलोरी मान तालिका में एक
किलो मीथेन गैस, एक किलो पेट्रोल, रसोई गैस, मिट्टी का तेल या डीज़ल के लिए बराबर ऊर्जा सामग्री में है. रसोई गैस आम तौर पर मिट्टी का तेल ग्रामीण भारत में मुख्य ईंधन है, जबकि शहरी क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए एलपीजी प्रयोग किया जाता है. एक 15 किलो एलपीजी सिलेंडर छह लोगों के एक परिवार के लिए दो महीने तक रहता है. यही बात मिट्टी के तेल के लिए सच है. पूरे एलपीजी और मिट्टी के तेल की हमारे 121 करोड़ की आबादी की आवश्यकता को 9.2 करोड़
गायों के गोबर से उत्पादित मीथेन गैस पूरी करा सकती हैं. सीएनजी की तरह, मीथेन गैस पेट्रोल की जगह में ऑटोमोबाइल इंजन चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. हमारा पेट्रोल की खपत (2003-04) में आठ लाख टन था. एक गाय पेट्रोल की 225 लीटर के बराबर मीथेन गैस पैदा करता है. इस धारणा पर, हमें पेट्रोल की आठ करोड़ टन जरूरत को पूरा करने के लिए लगभग 4 करोड़ गायों की आवश्यकता होगी. अगर अब 2012-2013 में पेट्रोल की खपत 5 गुना (40 लाख टन ) भी हो गयी हो तो भी 20 करोड़ गाय ही इसके लिए काफी हैं. बिजली एक जनरेटर 200 ग्राम पेट्रोल लेकर एक किलोवाट / घंटे (kWh) विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करता है. ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति विद्युत ऊर्जा की खपत प्रतिवर्ष 112 किलोवाट प्रति घंटा है. 74 करोड़ की हमारी ग्रामीण आबादी की विद्युत ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक
और 8.5 करोड़ गायों की आवश्यकता होगी. गोबर से मीथेन गैस प्राप्त करना काफी आसान है. गोबर गैस संयंत्र 20,000 रुपये से 1,00,000 रुपये के बीच की लागत में और तीन घन मीटर से 270 क्यूबिक मीटर कैपेसिटी, और विभिन्न आकारों में उपलब्ध हैं. एक कंप्रेसर पोर्टेबल सिलेंडर में इस मीथेन गैस को निकालने और भरने के लिए चाहिए. ये मीथेन गैस सिलेंडरों से खाना पकाने के लिए, या ऑटोमोबाइल और दो पहिया वाहन में इस्तेमाल किया जा सकता है. यानी कुल मिलकर 10 करोड़ गाय रसोई गैस, 20 करोड़ गाय पेट्रोल और 10 करोड़ गाय ग्रामीण बिजली के लिए काफी होगी. सिर्फ 50 करोड़ गाय से ही भारत स्वावलंबी बन सकता है.

2. कृषि खाद (फर्टिलाइजर) और कीटनाशक किसानों की सारी समस्या का समाधान है सिर्फ देसी गाय. बीज सिर्फ देसी ही ख़रीदे (पहली बार) खेती करने के लिए देसी बीज खरीदने होंगे. दूसरी बार किसान अपने बीजो से ही खेती करेगा, बीज का खर्चा बचेगा. संकर यानि हाइब्रिड बीज से बीज नहीं बनते. आजकल जी (जेनेटिकली मॉडिफाइड) बीज बाज़ार में उपलब्ध हैं, जो की सिर्फ सेहत के दुश्मन है, बल्कि इन बीजो से आप बीज पैदा नहीं कर सकते. इन बीजो को बनाने वाले अपनी दूकान निरंतर चलाना चाहते हैं इसलिए वह नहीं चाहते की आप अपने बीज खुद बनाये. जो ये हाइब्रिड बीज अपने खेत में डालते हैं उन्हें हर हाल में यूरिया, डी पी जैसे जेहरीले रसायन भी खरीदने पड़ेंगे नहीं तो कुछ भी पैदा नहीं होगा. सिर्फ देसी बीज ही ले. दूसरी फसल से किसान का बीज का खर्चा ख़तम. यूरिया, डी पी की जगह डाले देसी गाय के गोबर और गोमूत्र की खाद. 1 एकड़ खेत में सिर्फ 10 किलो देसी गाय का गोबर, 5-7 लीटर गोमूत्र, 1 किलो गुड, 1 किलो आटा /बेसन, 1 मुठ्ठी पुराने पेड़ की मिटटी चाहिए. इन सबको 200 लीटर पानी में मिलाये. 48 घंटे छांव में रखें.
उसके बाद सिंचन के पानी के साथ 1 एकड खेत में लगाये. यूरिया, डी ऐ पी का खर्चा पहली फसल से ही ख़तम.
थोडा सा खर्चा गुड और बेसन लाने में होगा. कीटनाशक के लिए गोमूत्र 5 लीटर 100 लीटर पानी में मिलाकर 1 एकड़ खेत में
छिड़क सकते हैं. इसी तरह से अलग अलग बिमारिओ या कीटों के लिए अलग अलग देसी प्राकृतिक दवाएं हैं.
 3. किसानो की आत्महत्या बंद होगी.खेती का खर्चा कम होगा, उपज कम नहीं होगी, उल्टा धीरे धीरे बढ़नी शुरू होगी.
 4. जहर और केमिकल रहित खाने से लोगों का स्वस्थ्य सुधरेगा, जिससे कैंसर,ब्लड प्रेशर, सुगर और हार्ट अटैक जैसी गंभीर जानलेवा बिमारिओ से बचाव होगा. दवाइयों का खर्चा कम होगा. दवाइयों पर खर्च होने वाला भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार भी बचेगा. रूपये की अंतररास्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ेगी, जिसका सीधा फायदा महंगाई और गरीबी कम करेगा.

5. इस खेती को करने से पानी का जलस्तर बढेगा, पानी दूषित नहीं होगा. 6. हवा शुद्ध होगी क्योंकि पेट्रोल डीज़ल की जगह सब कुछ सी जी से चेलगा. मतलब गाय है तो भारत है और भारत है तो विश्व है... इसलिए भारतीय समाज और
संस्कृति सिर्फ और सिर्फ गाय को गौ माता का दर्जा देता है... हमको यह समझने में बहुत समय लग गया. लेकिन
अगर हम आज भी प्रण ले ले की गाय को बचाना है क्योंकि गाय ही भारत को बचा सकती है.