Monday, May 26, 2014

हरड़

हरड़
हरड़ के नाम से तो हम सब बचपन से ही परिचित हैं | इसके पेड़ पूरे भारत में पाये जाते हैं | इसका रंग काला व पीला होता है तथा इसका स्वाद खट्टा,मीठा और कसैला होता है | आयुर्वेदिक मतानुसार हरड़ में पाँचों रस -मधुर ,तीखा ,कड़ुवा,कसैला और अम्ल पाये जाते हैं | वैज्ञानिक मतानुसार हरड़ की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसके फल में चेब्यूलिनिक एसिड ३०%,टैनिन एसिड ३०-४५%,गैलिक एसिड,ग्लाइकोसाइड्स,राल और रंजक पदार्थ पाये जाते हैं | ग्लाइकोसाइड्स कब्ज़ दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| ये तत्व शरीर के सभी अंगों से अनावश्यक पदार्थों को निकालकर प्राकृतिक दशा में नियमित करते हैं | यह अति उपयोगी है | आज हम हरड़ के कुछ लाभ जानेंगे -

१- हरड़ के टुकड़ों को चबाकर खाने से भूख बढ़ती है |

२- छोटी हरड़ को पानी में घिसकर छालों पर प्रतिदिन ०३ बार लगाने से मुहं के छाले नष्ट हो जाते हैं | इसको आप रात को भोजन के बाद भी चूंस सकते हैं |

३- छोटी हरड़ को पानी में भिगो दें | रात को खाना खाने के बाद चबा चबा कर खाने से पेट साफ़ हो जाता है और गैस कम हो जाती है |

४- कच्चे हरड़ के फलों को पीसकर चटनी बना लें | एक -एक चम्मच की मात्रा में तीन बार इस चटनी के सेवन से पतले दस्त बंद हो जाते हैं |

५- हरड़ का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दो किशमिश के साथ लेने से अम्लपित्त (एसिडिटी ) ठीक हो जाती है |

६- हरीतकी चूर्ण सुबह शाम काले नमक के साथ खाने से कफ ख़त्म हो जाता है |

७- हरड़ को पीसकर उसमे शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आनी बंद हो जाती है|

Saturday, May 24, 2014

आंवला चूर्ण

आंवला चूर्ण
आंवले को सुखा कर उसे पिसवाकर घर ही में आंवला चूर्ण बनाया जा सकता है या बाज़ार में भी विभिन्न ब्रांड के आंवला चूर्ण मिलते है.
- चिरयौवन व दीर्घायुष्य प्रदान करने वाला, रसायन द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ, आयुर्वेद में 'अमृतफल' नाम से सम्बोधित व औषधियों में श्रेष्ठ फल है – आँवला। आँवला सभी ऋतुओं में, सभी जगह सभी के लिए लाभदायी है।
- आँवला विटामिन सी का राजा होने के कारण शरीर को रोगाणुओं के आक्रमण से बचाता है, शारीरिक वृद्धि में आने वाली रूकावटों को दूर करता है, यकृत के कार्यों को सुचारू रूप से चलने में मदद करता है, जीवनीशक्ति को बढ़ाता है तथा दाँतों व मसूढ़ों को मृत्युपर्यन्त सुदृढ़ बनाये रखता है।
- आंवला के चूर्ण में मिश्री पीस कर मिला ले. इस मिश्रण का एक चम्मच एक गिलास पानी में घोलकर सुबह शाम शरबत की तरह पी ले. यह अत्यंत स्वादिष्ट, पुष्टिदायक व उत्तम पित्तशामक है। यह सप्तधातुओं की वृद्धि कर शरीर को बलवान व वीर्यवान बनाता है।
- इसके सेवन से पित्तजनित विकार जैसे – आँखों की जलन, आंतरिक गर्मी, सिरदर्द आदि तथा उच्च रक्तदाब, रक्त व त्वचा के विकार, मूत्र एवं वीर्य संबंधी विकार नष्ट हो जाते हैं। यह एक अत्यन्त सुलभ, सस्ता एवं गुणकारी प्रयोग है।
- नवशक्ति की प्राप्तिः एक महीने तक आँवले का चूर्ण नियमित रूप से घी, शहद और तिल का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से मनुष्य की बोलने की शक्ति बढ़ती है, शरीर कांतिमान हो उठता है तथा चिरयौवन प्राप्त होता है।
- इन्द्रियों की कार्यक्षमता में वृद्धिः आँवले का चूर्ण पानी, घी या शहद के साथ सेवन करने से जठराग्नि बढ़ती है, सुनने, सूँघने, देखने की क्षमता में बढ़ोतरी होती है तथा दीर्घायुष्य प्राप्त होता है।
- हृदय की मजबूतीः सूखा आँवला एवं मिश्री चूर्ण सम मात्रा में एक-एक चम्मच सुबह शाम सेवन करने से हृदय मजबूत होता है। हृदय के वाल्व ठीक ढंग से कार्य करते हैं। हृदयरोगियों को यह प्रयोग कम से कम एक वर्ष तक नियंत्रित करना चाहिए।
- काले, घने, रेशम जैसे बालों के लिएः 20 सि 40 ग्राम सूखा आँवला 200 ग्राम पानी में रात को भिगो दें व सुबह उस पानी से बाल धो दें। आँवला-मिश्री का समभाग चूर्ण पानी के साथ सेवन करें। इस प्रयोग से बालों की सभी समस्याएँ खत्म हो जायेंगी व बाल चमचमाते नजर आयेंगे।
- गर्भवती स्त्रियों के लिएः नित्य 2 नग मुरब्बा सुबह खाली पेट गर्भवती महिला को खिलाने से प्रसव नैसर्गिक रूप से बिना किसी औषधि और चिकित्सकीय सहयोग के होता है तथा शिशु में तीव्र रोगप्रतिरोधक क्षमता पायी जाती है, जिसके प्रभाव से शिशु ओजस्वी व सुंदर होता है।
- समस्त यकृत रोगः आँवलों का 5 ग्राम चूर्ण सेवन करने से यकृत (लीवर) के दोष दूर हो जाते हैं।
- पेट के कीड़ेः ताजे आँवले का रस छः चम्मच और शुद्ध शहद 1 चम्मच मिलाकर एक सप्ताह तक सुबह शाम दें। इससे निश्चित रूप से कृमि मल के साथ बाहर आ जाते हैं।
- पेट के समस्त रोगः आँवला चूर्ण का सेवन करने से पेट के लगभग सभी रोगों में लाभ होता है। कब्ज दूर होती है. गोमूत्र के साथ करे तो और भी अधिक लाभ होता है.
- तेज व मेधा की वृद्धिः आँवला चूर्ण घी के साथ रोज सेवन करने से शरीर में तेज व मेधाशक्ति की वृद्धि होती है।
- दीर्घायु-प्राप्ति हेतुः 'गरूड़ पुराण' के अनुसार सौ वर्ष तक जीने के इच्छुक व्यक्ति को नित्य आँवला मिले जल से स्नान करना चाहिए।
- गर्मियों में त्वचा पर आंवले के चूर्ण को पानी में घोलकर लेप करने से शरीर की गर्मी निकल जाती है. त्वचा कांतिवान होती है.
बालों में भी यह लेप लगाने से बल चमकदार , काले होते है. रुसी दूर होती है.
- एडियों पर लेप लगाने से फटी एडियाँ ठीक होती है.
- आंवले के साथ हरा धनिया पीसकर खाने से भी आंखों के रोग में लाभ होता है.
- आंवला और चंदन का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर 1-1 चम्मच चूर्ण दिन में 3 बार शक्कर और शहद के साथ चाटने से गर्मी की वजह से होने वाली उल्टी बंद हो जाती है।
- लगभग 1 महीने तक प्रतिदिन सुबह और शाम को पीने से स्त्रियों को होने वाला श्वेतप्रदर नष्ट हो जाता है।
- आंवला चूर्ण से 2 गुनी मात्रा में गुड़ मिलाकर बेर के आकार की गोलियां बना लें। 3 गोलियां रोजाना लेने से जोड़ों का दर्द खत्म होता है।
- पिसा हुआ आंवला 1 चम्मच, 2 चम्मच शहद में मिला कर चाटें, ऊपर से दूध पीएं। इससे सदा स्वास्थ्य अच्छा रहता है। दिनभर प्रसन्नता का अनुभव होता है।
- यह दांतों , मसूढ़ों , हड्डियों को मज़बूत बनाता है.
- गर्मी से होने वाली शरीर की जलन दूर करता है.
- इतने सारे लाभ मिले इसलिए घर में अमृत फल आंवले का चूर्ण अवश्य रखे.

Thursday, May 22, 2014

अरहर

अरहर 
अरहर की खेती लगभग ३,५०० साल पहले से की जाती है | यह भारत में बहुत प्रयोग की जाती है , यहाँ पर इस दाल को शाकाहारी वर्ग के लिए मुख्य प्रोटीन स्रोत माना जाता है | अरहर की दाल में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन के साथ-साथ amino acids ,methionine ,lysine or tryptophan भी पाए जाते हैं | 
दाल के रूप में उपयोग में ली जानेवाली सभी दलहनों में अरहर का प्रमुख स्थान है | यह गर्म तथा शुष्क होती है इसलिए इसे देसी घी में छौंककर खाना चाहिए | अरहर की दाल में पर्याप्त मात्रा में घी मिलाकर खाने से वह वायुकारक नहीं रहती | यह दाल त्रिदोषनाशक (वात ,पित्त और कफ़ ) है , अतः यह सभी के लिए अनुकूल है |
आइये जानते हैं अरहर के कुछ औषधीय गुण ------------
१-अरहर के पत्तों और दूब घास का रास निकालकर छान लें , इसे सूंघने से आधे सर का दर्द दूर होता है |
२-अरहर के पत्तों को जलकर राख बना लें , इस राख को दही में मिलाकर लगाने से खुजली समाप्त होती है |
३-अरहर की दाल खाने से पेट की गैस की शिकायत दूर होती है |
४-रात को अरहर की दाल पानी में भिगो दें , सुबह इस पानी को गर्म करके गरारे करने से गले की सूजन दूर होती है |
५-अरहर के कोमल पत्ते पीसकर घावों पर लगाने से घाव जल्दी भरते है |
६-यदि शरीर के किसी अंग पर सूजन है तो चार चम्मच अरहर की दाल को पीसकर बांधने से उस अंग की सूजन खत्म हो जाती है |
७-अरहर की दाल पाचक है तथा इसका सेवन बवासीर , बुखार, व गुल्म रोगों में लाभकारी है |

Wednesday, May 21, 2014

आम

आम 

आम को शास्त्रों में अमृत फल माना गया है | आम को फलों का राजा भी कहा जाता है | आइये आज हम इसके कुछ सरल और उपयोगी प्रयोग जानते हैं :-----

१- यदि बच्चों को मिट्टी खाने की आदत हो तो उसे छुड़ाने के लिए आम की गुठली की गिरी का चूर्ण पानी में मिलाकर दिन में दो -तीन बार पिलायें , इस प्रयोग से पेट के कीड़े भी मर जाते हैं | 

२-सूखी खांसी - एक पका हुआ अच्छा सा आम लें , उसे आग में भून लें | जब यह ठंडा हो जाए तो इसे धीरे -धीरे चूसें , इससे सूखी खांसी में लाभ होता है |

३- मधुमेह - आम के पत्तों को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें , इसे 5-5 ग्राम की मात्रा में सुबह - शाम पानी से 20-25 दिन लगातार सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है |

४- कब्ज़ - पके आम खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से शौच खुलकर आती है , जिससे पेट साफ़ हो जाता है और कब्ज़ से छुटकारा मिल जाता है |

५- कान दर्द -आम के पत्तों का रस निकालें , इसे हल्का सा गर्म करके कुछ बूँद कान में डालें , कान दर्द में लाभ होता है |

६-पायरिया - आम की गुठली की गिरी निकल लें , सुखाकर इसका बारीक़ चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को मंजन की तरह करने से पायरिया एवं दांतों के सभी रोगों में लाभ होता है |

७- लू तथा गर्मी -कच्चे आम का पन्ना बना कर पीने से लू तथा गर्मी लगने से होने वाली बेचैनी ठीक होती है |

आम खाने के बाद पाचन सम्बन्धी दिक्कत होने पर तीन - चार जामुन खा लें ,लाभ होगा | जामुन के स्थान पर चुटकी भर पिसी सौंठ में इतना ही सेंधा नमक मिलकर लिया जा है |
आम खाने के बाद गर्म दूध का सेवन करना चाहिए , आम के ऊपर पानी का सेवन कदापि ना करें |

Tuesday, May 20, 2014

देवीची आरती कशी करावी ?

देवीची आरती कशी करावी ?
देवीचे पूजन झाल्यावर शेवटी आरती केली जाते. आरती म्हणणार्या प्रत्येकालाच आरती कोणत्या चालीत म्हणावी, त्या वेळी कोणती वाद्ये वाजवावीत आदी शास्त्र ठाऊक असतेच, असे नव्हे. ती त्रुटी या लेखाद्वारे थोड्याफार प्रमाणात भरून काढण्यात आली आहे.

. आरती म्हणण्याची योग्य पद्धत कोणती ?
         ‘देवीचे तत्त्व, म्हणजेच शक्तीतत्त्व हा तारक-मारक शक्तीचा संयोग आहे. त्यामुळे देवीच्या आरतीतील शब्द हे अल्प आघातजन्य, मध्यम वेगाने आणि आर्त चालीत, तसेच उत्कट भावात म्हणणे इष्ट ठरते.


. आरतीच्या वेळी कोणती वाद्ये वाजवणे योग्य आहे ?
         देवीतत्त्व हे शक्तीतत्त्वाचे प्रतीक असल्याने देवीची आरती करतांना शक्तीयुक् लहरी निर्माण करणारी चर्मवाद्ये हलक्या हाताने वाजवावीत.


. आरती करतांना देवीला एकारतीने ओवाळावे कि पंचारतीने ?
         हे देवीला आरती ओवाळणार्याचा भाव आणि त्याची आध्यात्मिक पातळी (टीपयांवर अवलंबून असते.

. पंचारतीने ओवाळणे
पंचारती
पंचारती

         पंचारती हे अनेकत्वाचे, म्हणजेच चंचलरूपी मायेचे प्रतीक आहे. आरती ओवाळणारा नुकताच साधनेला प्रारंभ केलेला प्राथमिक अवस्थेतील साधक (५० टक्क्यांपेक्षा अल्प आध्यात्मिक पातळी (टीपअसलेला) असल्यास त्याने देवीला ओवाळतांना पंचारतीने ओवाळावे.

. एकारतीने ओवाळणे
एकारती
एकारती

         एकारती हे एकत्वाचे प्रतीक आहे. भाव असलेल्या आणि ५० टक्क्यांपेक्षा जास्त आध्यात्मिक  पातळी असलेल्या साधकाने देवीला एकारतीने ओवाळावे.

. आत्मज्योतीने ओवाळणे
         ७० टक्क्यांपेक्षा जास्त पातळी असलेला आणि अव्यक् भावात प्रवेश केलेला उन्नत जीव स्वतःतील आत्मज्योतीनेच देवीला अंतर्यामी न्याहाळतो. आत्मज्योतीने ओवाळणे, हे एकत्वातील स्थिरभावाचे प्रतीक आहे.


. आरती ओवाळण्याची योग्य पद्धत कोणती ?
         देवीला आरती ओवाळतांना ती घड्याळाच्या काट्याच्या दिशेने पूर्ण वर्तुळाकृती पद्धतीने ओवाळावी.’
- एक विद्वान (टीप(
सौ. अंजली गाडगीळ यांच्या माध्यमातून, २२..२००५)

         या लेखात आरतीसंबंधाने सांगण्यात आलेले शास्त्र समजून घेऊन तशी आरती करणार्या सर्व देवीभक्तांना देवीचा कृपाशीर्वाद मिळो, ही श्री गुरुचरणी प्रार्थना !


संदर्भ : सनातन-निर्मित लघुग्रंथदेवीपूजनाशी संबंधित कृतींचे शास्त्र