Tuesday, April 22, 2014

गंगा (Ganga RiveR)

गंगा को शास्त्रों में देव नदी एवं स्वर्ग की नदी कहा गया है। इस नदी को पृथ्वी पर लाने का काम महाराज भगीरथ ने किया था। महाराज भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगवान विष्णु के चरण से निकलने वाली गंगा को अपने सिर पर धारण करके पृथ्वी पर उतारने का वरदान दिया।
पुराणों में वर्णित कथा को आप आज भी अपनी आंखों से देख सकते हैं। हलांकि इसमें में आपको विष्णु और शिव के साक्षात दर्शन तो नहीं होंगे लेकिन उनके विग्रह को अवश्य देख सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कलियुग में भगवान मनुष्य के समझ प्रत्यक्ष प्रकट नहीं हो सकते।
क्योंकि आज का मानव हर चीज को तर्क की दृष्टि से देखता है जबकि आस्था तर्क पर नहीं विश्वास पर आधारित होती है। विश्वास हो तो पत्थर में भी ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन और चमत्कार देख सकते हैं और तर्क करेंगे तो प्रत्यक्ष प्रकट ईश्वर भी छल प्रतीत होगा। आस्था और तर्क में उलझने की बजाय गंगा अवतरण के लौकिक पहलुओं पर बात करते हैं।
भगवान बद्रीनाथ को विष्णु का साक्षात रूप मना गया है। और इसे बैकुण्ठ के समान पावन स्थान माना गया है। बद्रीनाथ धाम मंदिर के नीचे से अलकनंदा नदी निकलती है। अलकनंदा को गंगा का रूप माना गया है। यहां अलकनंदा का रूप देखकर आप स्वयं अनुभव करेंगे कि गंगा भगवान विष्णु के चरणों से निकल रही है।
इसके बाद आप पहुचेंगे केदारनाथ। केदारनाथ को भगवान शिव का प्रत्यक्ष रूप माना जाता है। केदारनाथ मंदिर से लगभग साढ़े तीन किलोमीटर दूर गांधी सरोवर एवं रूप कुण्ड है। इसे भगवान शिव की जटा मान सकते हैं। गंगा अवतरण की कथा के अनुसार शिव ने अपनी जटा से एक धारा पृथ्वी पर उतारा इसे मंदाकिनी नदी मान सकते हैं।
कथा के अनुसार जब गंगा पृथ्वी पर उतरी तब पहली बार देवप्रयाग में प्रकट हुई थी। गंगा अवतरण देखने के लिए 33 कोटि देवी-देवता यहां पधारे थे। इस स्थान पर भगीरथी का मिलन अलकनंदा से होता है। शिव की जटा से निकली मंदाकिनी अलकनंदा से रूद्रप्रयाग में ही मिल जाती है। इस तरह देव प्रयाग में मंदाकिनी, अलकनंदा और भगीरथी मिलकर गंगा कहलाती हैं।
गंगा अवतरण की कथा का आधार सगर के पुत्रों को मुक्ति दिलाना है। सगर के पुत्र जहां ऋषि के शाप से भष्म हुए थे वह स्थान वर्तमान में पश्चिम बंगाल में स्थित गंगासागर नामक स्थान है जहां गंगा, सागर की गोद में समा जाती है। ये तीनों नदियां काफी मात्रा में जल लेकर आती है।
अगर राजा भगीरथ केवल भागीरथी का जल लेकर इतनी लंबी दूरी तय करते तो शायद बीच मे ही गंगा विलुप्त हो जाती इसलिए देव प्रयाग में इन तीनों नदियों का संगम कराया गया और संसार के सामने भक्ति और शक्ति का अद्भुत मिलन गंगा के रूप में प्रस्तुत हुआ।

No comments: